स्त्रियाँ सीख रही हैं मुस्कुराना
स्त्रियाँ सीख रही हैं मुस्कुराना
चिंताओं
के बीजों को रख कर
चूना
की हड़िया में
भूल
चुकी हैं स्त्रियाँ
सीझकर
चिताओं के बीज
जब बदल
जायेंगे कैल्सियम में
स्त्रियां
सुख की सुरती रगड़ कर हथेली पर
दबा
लेंगी होंठ में मुस्कराकर
समझाएंगी
अपनी संतानों को
पीक
बचाते हुए सुख की
बच्चों
के अवलोकन में दिखेंगी स्त्रियाँ
पूर्ण
मनुष्य की भांति
स्त्रियाँ
सब जानती हैं
मगर
मुस्कुराना नहीं आता सबके हिस्से
इस कथन
को झुठलाना सीख रही हैं स्त्रियाँ
डोर पर
सूखती पियरी होती हैं स्त्रियां
मन
लहकता है उनका दिन में कई कई बार
तितली
बन उड़ती हैं इच्छाएँ भी
मगर स्त्रियाँ
नहीं उड़ पातीं
दर ओ
दीवार के बीच
रह
जाती हैं फंसकर स्त्रियाँ
फिर
घटती है घटना एक दिन
सबसे
चुप स्त्री
बन
जाती है मीराबाई और लल्लद्य या लल्लेश्वरी
छोड़कर
दर ओ दीवार एक स्त्री
बन
जाती है सिरमौर
तमाम
स्त्रियों की
यानि स्त्रियाँ
जानती हैं दीवानी होना भी
मगर
तभी जब कोई कृष्ण
कोई
शिव बनना सीख लेगा...।
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