मुरादें



मुरादें जब तक माँगी नहीं जातीं

उनका रंग खिलता नहीं

माँ ने मुरादों में हमें माँगा

हमने अपने प्रेमी को

हमारी मुरादों के बाहर रहकर भी

माँ मुरादें माँगकर भेजती रही

हमारी ओर

जैसे सूरज की तपिश को सहकर भी

पेड़ भेजते रहते हैं छाया

धरती की ओर

मुरादें माँगना लेन-देन नहीं,

प्रेम है, जिसे वासना रहित

माँगा गया

मुरादें माँगते वक्त

माँ उतरती रही अपने भीतर

जहाँ सिर्फ हम थे

हमने अपनी मुरादों में

शामिल किया माँ को

उसके जाने के बाद।

 

Comments

Post a Comment

Popular posts from this blog

एक नई शुरुआत

आत्मकथ्य

बोले रे पपिहरा...