मुरादें
मुरादें जब तक माँगी नहीं जातीं
उनका रंग खिलता नहीं
माँ ने मुरादों में हमें माँगा
हमने अपने प्रेमी को
हमारी मुरादों के बाहर रहकर भी
माँ मुरादें माँगकर भेजती रही
हमारी ओर
जैसे सूरज की तपिश को सहकर भी
पेड़ भेजते रहते हैं छाया
धरती की ओर
मुरादें माँगना लेन-देन नहीं,
प्रेम है, जिसे वासना रहित
माँगा गया
मुरादें माँगते वक्त
माँ उतरती रही अपने भीतर
जहाँ सिर्फ हम थे
हमने अपनी मुरादों में
शामिल किया माँ को
उसके जाने के बाद।
भावपूर्ण बहुत सुंदर अभिव्यक्ति।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना मंगलवार १६ अप्रैल २०२४ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।
सुन्दर रचना
ReplyDeleteबहुत बहुत सुन्दर
ReplyDeleteबहुत सुंदर
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