प्रेम पारखी

 


सुनो प्रेम पारखी

इसकी-उसकी जिसकी आंखों में

झांकना बंद करो

कभी मिलो अपने आप से

अकेले में बिल्कुल बेपर्दा होकर

कि छिटक गए हो तुम

ख़ुद से कहीं दूर

जिन दृश्यों को तुम खखोलते हो

दिन भर, दोपहर भर, रात भर

प्रेम उनमें है ही नहीं

प्रेम दृश्यों के पीछे बहता है

तरलता लिए हुए

तुम्हारी नज़र ठोस को ही

तलाशती और पकड़ पाती हैं

तुम्हें बेवजह प्रेम खोजने की आदत नहीं

और वजह प्रेम को पसन्द नहीं

समझे!

 

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