विकसित भारत की खूबसूरत तस्वीर....
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मुंबई थाणे |
विकसित भारत की खूबसूरत तस्वीर....
फ्लैट कल्चर यानी उधार की संस्कृति।
सभ्याता नकलची है।
सभ्यता इतनी उत्साही और जुनीनी है कि बस पूछो ही मत! सभ्यता ने ही पराई
संस्कृति को अपनाकर मनुष्य को अपने आपको प्राइवेट करना सिखाया। आत्मकेंद्रित
प्रोग्रेसिव नज़रिया अख़्तियार करने को बाध्य किया।
बात यहीं तक नहीं थमती। सेल्फ प्राइवेसी के भूत ने मां बाप से बच्चे छीन
लिए और बुजुर्गों के आशिर्वाद, अनुभव
और संवाद की तहजीब से बच्चों को वंचित कर दिया।
"लोग क्या कहेंगे?"
आज भले इस वाक्य को रूढ़ी से जोड़ दिया गया है लेकिन गए वक्त में ये वाक्य
उन व्यक्तियों के लिए चाबुक का काम करता था जो असामाजिक थे। वे सामाजिक नकेल
"लोग क्या कहेंगे?" के डर से ही सही,
रास्ते से भटकने से बच जाते थे।
आज का नारा "लोग जायें भाड़ में हमें जो पसन्द हम वही करेगें।"
ये निर्भयता फ्लैट कल्चर ने दी और भारत में अकरणीय कार्य धड़ल्ले से किए
जाने लगे।
इतिहास गवाह है कि हड़प्पन सिविलाइजेशन के बाद वैदिक काल का आगाज़ हुआ था।
ये कंप्यूटर काल चल रहा है। हो सकता है कि आदमी ऊब कर फिर भारतीय संस्कृति की ओर
लौटे। गांव की ओर लौटे.....आशा पर आसमान टिका है।
सटीक
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