मौसम के उन्माद में
फागुन के संग आ गया,खेतों में ऋतुराज।
डाल डाल पर उग गए,खुशियों के नव ताज।।
लगे डोलने हृदय फिर, कृषक हुए सौमित्र।
माटी भी उनको लगे, चंदन का ज्यों इत्र।।
पतझड़ में जब बोलती, संध्या रूखी बात।
लिए पोटली खुशी की, मौन पसरती रात।।
मौसम के उन्माद में, मौन हुए वाचाल।
ताल पोखरे मचलते, ओढ़ बसंती पाल।।
घरनी बोली कृषक से, चलो कंत उज्जैन
कृषक बोलता प्रिया से, सुनो
कोयली बैन।।
मनभावन दोहे
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