जहाँ तेरी ये नज़र है…

ट्रेन को शाम-सात बजे कानपुर रेलवे स्टेशन पहुँचना था, पहुँची सुबह तीन बजे। किसी को लेने आने के लिए पहले ही मना कर चुकी थी और स्टेशन पर बैठने का मन नहीं था सो बाहर निकलकर देखने लगी। ऑटो-गाड़ियों में ड्राइवर ऊँघ रहे थे। थोड़ी ऊहापोह के बाद मैंने एक ऑटो वाले से चलने के लिए कहा। बड़ी मुश्किल से वह बीस रुपए ज्यादा लेकर चलने को तैयार हुआ। थोड़ी देर में रिक्शा जैसे ही सड़क पर पहुँचा, अँधेरे ने चारों ओर से मुझे जकड़ लिया। कानों में अँधरे की सांय-सांय बज उठी। छाती में डर थरथरा उठा तो अनेक प्रकार की दुश्चिंताओं ने मुझे घेर लिया।

"रिक्शा वाला कहीं मु स ल मा…..तो नहीं?" विचार आते ही व्याकुलता चर्म सीमा लाँघने लगी। समझदारी ने हाथ खड़े किए तो एक युक्ति सूझ गई।

"हेलो इंस्पेक्टर साहब! थाना चकेरी!" अपने ख़याली भाई को झूठमूठ का इंस्पेक्टर बनाकर फ़ोन लगा मैं अभिनय करने लगी।

"........"

"अरे क्या बताएँ, गाड़ी सात घंटे बिलंब से अभी-अभी स्टेशन पहुँची है, घर जा रही हूँ।"

"......."

"किससे जा रही हूँ? ऑटो-रिक्शा से।"

"........."

"आपकी गाड़ी का नंबर क्या है? साथ में अपना मोबाइल नंबर भी बताना। मेरा भाई पूछ रहा है।" ऑटो वाले से थोड़ी अकड़ के साथ मैंने कहा।

"UP14 SM 3343 गाड़ी नंबर और 7913265845 मेरा नंबर है।" उसने थोड़ी तल्खी से बोलना शुरू किया जिसे मैं दोहराती गई।

"सुन लिया भाई?”

“……….”

“मैं कहाँ पहुँची? अच्छा रुको, बताती हूँ।"

"किस रास्ते पर चल रहे हो…? इंस्पेक्टर साहब पूछ रहे हैं।"

"मुरे कंपनी पुल से गुज़र रहा हूँ।" रिक्शा चालक ने बेस्वाद बोला।

"भाई, रिक्शा मुरे कंपनी….।"

"......."

"अरे! नहीं नहीं भाई! आप अपनी जीप और कांस्टेबल को मत भेजो, बस थोड़ी देर में पहुँचने वाली हूँ।"

"........."

"जी जी, घर पहुँचकर फोन करती हूँ।”

“.........”

“कुर्ता पायजामा…तुम्हारे लिए जो खरीदा है।" मैंने मुँह पर हाथ रखकर कोड वर्ड में खुसफुसाकर रिक्शे वाले के परिधान के बारे में बताने का अभिनय किया और मोबाइल बंद कर पर्स में रखा ही था कि रिक्शा चालक बोल पड़ा।

"भले मैं वह हूँ लेकिन डरो मत बहन जी! मैं वह नहीं जो आप समझ रही हो।" बोलते-बोलते उसके चेहरे पर जो भाव उभरा जिसे देखकर मैंने शर्मिंदगी के साथ किराया दिया और सरपट घर की ओर बढ़ गई।

****

एक पाठक का पत्र 


 जगमग दीपज्योति पत्रिका में प्रकाशित 

Comments

  1. कितना भयभीत है आज आदमी का मन

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  2. इंसान के संशकित मन का बहुत सुंदर विवेचन।

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  3. ज्योति जी बहुत धन्यवाद

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