बुद्ध न होते

 

कह देते यदि मन की पीड़ा

तो शायद तुम बुद्ध न होते।।

***

पूजा अर्चन यज्ञ नेम जप,

करते रहते भरम उजागर

छोड़ न देते यदि तुम घर को

तो शायद तुम शुद्ध न होते।।

***

खुद को रखकर धुरी बीच में

नाप गए सबके मन आगर

अहम मार दफनाते खुद के

तो शायद फिर युद्ध न होते।।

***

मन कर लेते कबिरा जैसा

लोई  जैसा  देह  समर्पण

साँस-साँस में जपते सच को

तो शायद प्रभु क्रुद्ध न होते।।

 ***

Comments

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल गुरुवार(०१-१२-२०२२ ) को 'पुराना अलबम - -'(चर्चा अंक -४६२३ ) पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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  2. बहुत सुंदर रचना ,भाव प्रवण हृदय को छूती।

    ReplyDelete

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