तुम्हारी यादें
ओ प्यारे मुरशिद!!
ज़रा ठहर जाना उस मोड़ पर
जहां रुक कर की थीं हमने बातें,
शीशम के दरख्तोंं से
तुम ये कतई मत समझ लेना कि
मैं तुम्हारे गंतव्य में बाधा बनूँगी
नहीं!बिल्कुल नहीं
मैं लौटाने आ रही हूं बस
तुम्हारी यादें
जिन्हें तुम भूल गए हो शाम
कॉफी पीते वक्त
मेरे घर के कैफेटेरिया में पड़ी
वैंत वाली उस गोल मेज़ पर
जिस पर रखा है तुम्हारी पसंद का
क्रिस्टल वाला ऐश ट्रे
सुनो! मैंने तुमसे
सिर्फ़ एक सिगरेट मांगी थी ताकि
तुम्हारी गिनती की सिगरेटों में से
कर सकूं एक कम
लेकिन तुमने तो यादों का पुलिंदा ही
खिसका दिया आँख बचा कर
नन्हें गुलदान की ओट में
तुम क्या सोचते हो
वस्तुएं तुम्हारी चुगली न करेंगी
खैर छोड़ो
अब इन धड़कती यादों पर
मेरा कोई अख़्तियार नहीं
इन्हें तुम्हारे पास होना ही उचित होगा
इसलिए कहती हूं
ठहर जाओ
कि मिल सके मुझे
रूहानियत भरा सुकून।
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