भूलने और याद करने के बीच



बरसात का मौसम

अभी आया नहीं था

किंतु उग आई थी प्यास

हरी हरी

उस पत्ते के अंतर में

जो अमराई के दिनों में

झर झर झरते आमों के साथ

आ गिरा था ज़मीन पर

पर नहीं उठाया था

किसी ने भी

आम के पत्ते को

फलों के साथ

तभी से दबा बैठा है पतझड़

उसके नीचे

पत्ता जानता है गणित

पतझड़ और वसन्त का

किन्तु उसे करना होगा स्वागत

पहले बरसात का

फिर कांपती ठिठुरती ठंड का

कुल मिलाकर उसे भूलना होगा

अपने आप को

क्योंकि किसी ने कहा है कि

भूलने और याद करने के बीच ही

बनती है अपनी दुनिया

बनता है अपना मन!!

 ***

Comments

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार १७ जून २०२२ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं।
    सादर
    धन्यवाद।

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  2. भूलने और याद करने के बीच ही

    बनती है अपनी दुनिया

    बनता है अपना मन!!

    लाजवाब रचना । पत्ता भी बैठ है इंतज़ार में कि कब पतझर आये ।

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  3. वाह बहुत ही बढ़िया .....

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  4. बरसात का मौसम
    अभी आया नहीं था
    किंतु उग आई थी प्यास
    हरी हरी
    उस पत्ते के अंतर में
    जो अमराई के दिनों में
    झर झर झरते आमों के साथ
    आ गिरा था ज़मीन पर... बहुत ही सुंदर सृजन दी।
    सादर

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  5. स्वेता सिन्हा जी, शुभा जी, संगीता जी और प्रिय अनीता जी को अनेक आभार!!

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