मन का बंजरपन

 


कभी कभी

मन का खालीपन बंजर बनकर

हो जाता है तब्दील

रेत के ढूहों में

रेतीला बवंडर

थामने से भी नहीं थमता

तब में फैंक देती हूं

स्मृति की एक नन्हीं कंकड़ी

शब्द सागर में

जहां संसारी कुमुदनी ले रही होती है

फुर्तीली अंगड़ाई

यादों की मछलियां

देखते ही देखते सोख लेती हैं

मन का अर्थहीन रूखापन

मन फिर से लग जाता है

दुनिया के रख रखाव में

स्थूल विचलन यदि रहे स्थाई

तो हो सकेगा स्थगित

मन का बंजरपन

सदा के लिए।

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