मत कहो अंतिम महीना....


मत कहो अंतिम महीना मुझे प्यारे

नए का निस्तार देकर जाऊँगा ।।

 

इस बरस की खूबियों

को याद रखना

स्व भूल से लेना सबक

अवशेष लिखना

 

गलतियों से मत जलाना

हृदय अपना

नए का विस्तार देकर जाऊँगा ।।

 

एक चिंता सतत मन को

सालती है

फूल आगी का बना

कब मालती है

 

नवलता के हाथ पर

इतिहास लिखना

नए का त्योहार देकर जाऊँगा ।।

 

गर्जना में सर्जना को

जोड़ लेना

रूढ़ियों की रीढ़

चुपके तोड़ देना

 

प्रस्फुटन की पीर सह,

तरु जन्म लेता

कुछ नया हरबार देकर जाऊँगा ।।

*** 

 

Comments

  1. जी नमस्ते ,
    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार(३१-१२ -२०२१) को
    'मत कहो अंतिम महीना'( चर्चा अंक-४२९५)
    पर भी होगी।
    आप भी सादर आमंत्रित है।
    सादर

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    Replies
    1. बहत बहुत धन्यवाद अनीता जी!!

      Delete
  2. बहुत सुंदर रचना

    ReplyDelete

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