//लौटती हूँ मैं //

 


सबकी होतीं है कुछ जगहें

कुछ वजहें वापस लौटने की

मैं भी लौटती हूँ!


जैसे समझदार पंछी लौटते हैं

मौसम परिवर्तन के समय

अनुकूल ठिकानों पर


मछलियाँ लौट जातीं हैं मुख्यधारा में

छोड़कर अण्डे किनारों पर


नदियाँ समुद्र में,

समुद्र बादलों में

रेत घरों में और घर रेत में

बूढ़ी होकर माँएं लौटा करतीं हैं

अक्सर बचपन में


अँधेरा होने से पहले चिड़ियाँ घोंसलों में

दीपक की ज्योति रात में

भोर होते ही आँख में


वसंत की आहट पर पत्ते डालियों में

अकाल के बाद दाने बालियों में


वैसे ही लौटती हूँ मैं

उन स्थानों पर

जहाँ उगाई और रोपी गई थी

कभी किसी के द्वारा


मिलने अपने उस हिस्से से जो रहता है

हमारे बाद भी उन रिक्त स्थानों में

मौन होकर


आने जाने का क्रम हो जाता है ज्यादा

जब फूलता है हरसिंगार

मेरे मन के आँगन में

क्वार आते ही।

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