चंदा आए गगन पर


चंदा आए गगन पर,भर अमरित की खान

मटमैले से सिंधु को, देगा अभ्रक मान।।


लहरें होकर  बावरी, डोलेंगी  हर  ओर

सीपी में मोती बुने, चंद्रकला की कोर।।


गगन बुहारे आँगना, इंद्रधनुष ले हाथ

चंदा की प्रिय चाँदनी, काढ़े घूँघट माथ।।


शरद पूर्णिमा की छटा, हर लेती हर शोक

धरती के आनंद में, नवता का आलोक।।


चंदा खेले जल -सतह, अपनी आँखें मींच

चकवा डोले पुलिन पर, नैना-भृकुटी खींच।।

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