चाहूँ तुझको मैं बावरिया

 

तू काला तेरी प्रेमिल नज़रिया 

चाहूँ तुझको मैं बावरिया।।

 

छोड़ गए हो जब से मोहन

चैन हुआ है भादों का घन

नैना बरस-बरस  के  हारे 

दुख नाचे ज्यों नचे पतुरिया ।।

 

वक्त तुम्हारे घर रहता है

चपल बतकही वो करता है

समझ न पाऊँ भाषा उसकी 

धड़के मन ज्यों मेघ बिजुरिया ।।

 

वेद मन्त्र ना आती विनती

माया की चलती है गिनती

लाख छुड़ाऊँ अपनी उँगली

भटक पहुँचती वहीं डगरिया ।।

 

ढेर उजाला करता सूरज 

जीवन सोता है उसको तज

जकड़ी हूँ इस कदर स्वयं में 

कब फूटेगी मोह गगरिया ।।

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