रखना मन का मोल
सीधा बनने में सदा
रहे एक नुकसान
गुरु तो गुरु,लघु भी नहीं
करते हैं सम्मान.
विनयशील कहता नहीं
अपने मन का भार
हृदय उज्जडे समझते
मन से है लाचार.
छोड़ा जब से भौंकना
भूल गया संसार
तभी नहीं है छोड़ता
विषधर निज फुंकार.
कड़ुए फल रहते अमर
मीठे बनते भोग
अति का सीधापन रहा
जी का निर्मम रोग.
कानन में खोज़े गये
सीधे-लम्बे ताड़
टेढ़े थे जो आप में
बिहँसे छिपकर आड़.
स्वाभिमान के हाथ में
रखना मन का मोल
कह देना जो सत्य है
अपना हिरदय खोल.
***
जी नमस्ते ,
ReplyDeleteआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (१६-०६-२०२१) को 'स्मृति में तुम '(चर्चा अंक-४०९७) पर भी होगी।
आप भी सादर आमंत्रित है।
सादर