अमराई का राज़

 

आम, आम रहता नहीं, आता जब ऋतुराज
चलो फूल पैदा करें, अपने मन में आज।।

अमराई आती नहीं, सूखे तरु के पास
हृदय बनाएं पावना,मत हों तनिक उदास।।

कोयल भी तो जानती, अमराई का राज़
वो पंछी हम मनुज हैं, चलो सुधारें साज़।।

कृषक ढूंढ़ता फ़सल को, कोयल बस मकरंद
एक बीज में है छिपा , लिखे समय जो छंद।।

जड़ से लिपटी डालियां, डाल-डाल हैं पात
लेकिन सब कहते दिखें, केवल तरु की बात।।

वन - कानन में गूंजता, वासंती रंग मंत्र
मैं तू मैं तू में फंसा , बुद्धिमान गणतंत्र ।।
***

Comments

Popular posts from this blog

कितनी कैदें

बहस के बीच बहस

आत्मकथ्य