नया वर्ष आया

 

चलो विसर्जित करें पुराना

नया वर्ष आया।।

 

बावन बीघा फैला है जो कर्जा

किसको सौंपें

संकोची मन की आशाएँ

कहो कहाँ फैंकें

 

कहाँ छिपा दें गीला गूदड़

जिसे सुखा ना पाया।।

 

घरवाली के पास रखी है

चिंताओं की थैली

अम्मा ने कब से पहनी है

तन पर धोती मैली


ठिठुरा लाल कड़ी सर्दी में

कंबल ले ना पाया।।

 

लाल बही में छिपे पड़े हैं

कई वर्ष अधनंगे

जुरी नहीं थी सूखी लकड़ी

और न सूखे कंडे

 

कौड़ी-कौड़ी रहा जोड़ता

रुपया देख न पाया।।

***

Comments

  1. मर्मस्पर्शी सृजन...बहुत ही सुंदर।
    सादर

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  2. नमस्ते,
    आपकी इस प्रविष्टि के लिंक की चर्चा सोमवार 18 जनवरी 2021 को 'यह सरसराती चलती हाड़ कँपाती शीत-लहर' (चर्चा अंक-3950) पर भी होगी।--
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्त्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाए।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।

    #रवीन्द्र_सिंह_यादव

    ReplyDelete
    Replies
    1. बहुत बहुत धन्यवाद आपका रवीन्द्र जी !

      Delete
  3. बहुत सुन्दर

    ReplyDelete
  4. लाल बही में छिपे पड़े हैं

    कई वर्ष अधनंगे

    जुरी नहीं थी सूखी लकड़ी

    और न सूखे कंडे

    बेहद हृदयस्पर्शी रचना

    ReplyDelete
  5. लाल बही में छिपे पड़े हैं
    कई वर्ष अधनंगे
    जुरी नहीं थी सूखी लकड़ी
    और न सूखे कंडे

    व्यवस्था पर चोट करता बेहतरीन नवगीत....

    ReplyDelete
  6. आप सभी सुधी मित्रों को हार्दिक आभार ! गीत पसंद करने के लिए |

    ReplyDelete
  7. यथार्थ बहुत सुंदर सृजन।
    हृदय स्पर्शी।

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