जीवन की आपाधापी में
जीवन की
आपाधापी में
तुम्हें चैन से देख न पाया ।।
किसने रोका किया
पढ़े थे किसने मंतुर
कौन चढ़ा था घोड़
हुआ था क्यूँ कर आतुर
कान खींचते चौमासे में
हिस्से सब भींगा ही आया।।
दिवस हुए न सगे
निशा क्या होती अपनी
पाथ-पाथ कर उपले
घर की छूटी हफनी
कूटी सरसों खलिहानों में
लगी भूख, पनझोरा खाया।।
दूर खड़ी है खुशी
टेरती रहती हर दिन
मन गमके, उठे हिलोर
चुभे ना दुख का पिन
तो चलकर देखें उसे
बिहँस जो जग पर छाया ।।
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