बेखौफ़ धूप

ले आओ बेखौफ़

धूप तुम

नहीं रहेंगे हम

डर-डरकर।।


ऊब चुके हैं दिन सहमे से 

पहन-पहन कर मुँह पर पट्टी

विद्यालय के कान तरसते

नहीं चाहते बच्चे छुट्टी


ले आओ तुम टिकट

घुमन्तू

साथ चलेंगे हम

बढ़-बढ़कर ।।


भले चाँदनी पसर रही हो

लेकर मनमानी सौगातें

जुहू और चौपाटी वालीं

लेकिन तरस रही हैं रातें


ले आओ करताल

मौज की

गायेंगे हम जी

भर-भरकर ।।


आमंत्रण स्वीकार करेंगे

मिलने के हर एक निराले

लौटेंगे रोजनदारी पर

श्रमजीवी थे बच्चे वाले


ले आओ तुम

समय सलौना

जिसमें बरसे मधु

झर-झरकर।।

***

छायांकन : परीक्षित बाजपेयी

 

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