प्रेम दीये

 

आओ चलें धनतेरस पूजें

किसी असहाय के कटोरे में

दया के नहीं

मानवता के चंद सिक्के ही सही डालें

किसी अनपढ़ को

पढ़ने का महत्व सिखा कर

एक किताब भेंट में दें

किसी नवजवान को बताएँ

हर चमकती चीज़

सोना नहीं होती

किसी बच्चे को

शिष्टाचार का मतलब सिखायें

उसकी ही भाषा में

किसी बेसहारा को सहारे तक छोड़ आएँ

त्यागी हुई माँ को बताएँ

उसका त्याग अनमोल है लौटेगा जरूर

त्यागने वाला

छोड़ी गई बहन-बेटियों को समझाएं

जीवन का रास्ता गोल है

मिलेंगे छोड़ने वाले उसी रास्ते पर

आओ सिक्के पूजने से पहले पूजें नहीं

परिष्कृति करें

अपनी बोली,वाणी और दैहिक भाषा को

जिसको देख-सुनकर मना सकें

दिवाली वे भी

जिसने सुनी नहीं हो इंसानियत की भाषा

पिछली कई दीपावलियों से

आओ इस बार दीवाली का मौन तोड़ कर

भर दें स्नेहिल गुनगुनाहट 

जल उठें प्रेम दीये बिना डरे

देख लेना

उतर आएगा आसमान

धरती की गोल आँखों में ।

***


 

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