हम सीखेंगे

 


धकेलती रही बरसात

हवा को

हवा बरसात को

न बरसात सूख कर पापड़ बनी

न हवा भीगकर नदी

दोनों ने एक साथ रहकर भी

बचाये रखा खुद को अलग-अलग

सम्पूर्ण  

किन्तु ये क्या !

हमारे पास सुख था

मुठ्ठी भर-भरकर

दुःख ने जैसे ही छुआ उसे 

वह बदल गया चुटकी में 

रंग गया उसी के रँग में

फ़िर हम टेरते रहे

हवा,बादल,बरसात,पेड़ और पंछियों को

कोई नहीं आया

हम सींखेंगे अब सभी के साथ रहकर भी 

खुद को अकेले-अकेले 

पूरा बचाये रखना।

***

छायांकन :परीक्षित बाजपेयी

 

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