चालाकियाँ
“देख, मैंने आज ये वाली कथा लिखी है।” साँवली ने कहा, तो गोरी ने भी अपनी एक कथा पढ़ने का उससे आग्रह किया। साहित्य की नैया पर दोनों सवार हो हिचकोलें खाने लगी थीं। बातों का सिलसिला विद्यालय के लेक्चर से होते हुए लिंचिग तक आ पहुँचा था। थोड़ी देर में उबासी भरते हुए दोनों ने मोबाइल बैग में रख लिए।
“तूने देखा, वीरचंद को! सबकी उलटी-सीधी कथाएँ भी उसे बड़ी अच्छी लगती है। जब देखो सबकी पोस्ट पर “बहुत सुंदर” “अति उत्तम” लिखे पड़ा रहता है। मुझे तो लगता है साला टिप्पणियों को भी कॉपी पेस्ट करता होगा, सुंदर सुंदर सुंदर…. हा हा हा।” गोरी वाली महिला ने परिहास में कहा।
“अरे पूच्छो ही मत, बुरा हाल हुआ पड़ा है एफ.बी.पर।” साँवली ने सहमति दिखाई
“हे हे हे! वैसे मैं कोई बड़ी लेखिका तो नहीं। और बड़ा बनने का शौक भी नहीं, लेकिन फलाने, ढिकाने और वे वाले फलाने कह रहे थे कि मेरी कथाओं की आजकल बड़ी चर्चा हो रही है। मैं कमाल का लिखती हूँ।” गोरी वाली के चेहरे पर गर्व छलका जा रहा था। जिसे मौन हो साँवली देखने लगी।
“देखो भई, रचना यदि कबाड़ हुई तो मैं अपने शब्द बर्वाद बिल्कुल नहीं करती। बस एक लाइक वाला अँगूठा ज़रूर दबा आती हूँ। जिससे दोस्ती के तार भी न टूटें और अगले के भाव भी न बढ़ें।” गोरी वाली ने भवों को तानते हुए कहा।
“जब कोई इन-बोक्स आ जाए और फोन करने लगे कि,“क्या हुआ आप काफ़ी समय से मेरी रचनाओं पर नहीं दिखीं। तब क्या कहें?” साँवली ने उदास स्वर में पूछा।
“कुछ भी बहाना बना दिया कर।”
“जैसे क्या...? मुझसे तो झूठ बोला नहीं जाता।” सामली ने भावुक होते हुए कहा।
“देख थोड़े बहाने और बातें बनाना सीख न!” जब कोई यूँ कहे तो चट से कह दिया कर आपकी रचना बहुत उच्चकोटि की है और मेरी बुद्धि बेहद सामान्य, ग्लेड हो जाएगा सामने वाला।” गोरी वाली अपनी बुद्धि पर इतराई।
“जो खेल खेलना तू मुझे सिखा रही है, इसका मतलब वही तू मेरे साथ भी खेलती होगी?" साँवली ने कहते हुए मोबाइल बंद कर भावें चढ़ा लीं।
“क्या कह रही है तू! मैं कुछ समझी नहीं?” झेंप कर गोरी बोली।
बहुत बढ़िया कहा 👌
ReplyDeleteसाँवली ने गोरी की चालबाजी का बढ़िया जवाब दिया।🌹🌹
ReplyDeleteबहुत धन्यवाद आप दोनों का
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