दस दोहे

 
कौवा ठहरा बेसुरा, कोयल मीठे बैन
ठगती वो ही प्रेम से, कौवा  के दिन-रैन ||
 
तकली निशदिन चाहती,धागे के संग नाच
रुई बिनौरे में सुखी,दर्पण के संग काँच ||
 
आँख उजाला चाहती, या चाहे अँधियार
मूरख मन उल्झा रहे,सुलझाने में तार ||
 
हम गायेंगे आपको,आप करो अनुवाद
खुशियाँ गाने के लिए, रहे यार आवाद ||
 
लाँघी जब से नालियाँ,तब से हैं तैयार
चलो सहेली घूमने ,गंगा के उस पार ||
 
दसबजिया को खाँदकर,रोपा तुलसी-साथ
अकड़ सभी से कह रही, धरो चरण पर माथ ||
 
समय फिरंगी नाचकर,करता सबको दंग
समझ न पावे जो इसे,चढ़ती माथे भंग ||
 
बुरा-बुरा सबको कहे, पगला आठो याम
पानी जब दर्पण बना, पड़ा राम से काम ||
 
जड़-चेतन में बन सके,सबसे ऊँचा नाम
होड़ा-होड़ी में छिना,मन के लघु आयाम ||
 
बंधन भी प्यारा लगे, जो हो उसमें नेह
अधिकारों की डांट में,झरता नैनों मेह ||

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