गुलाम देहों में ...

 

चौदह अगस्त की रात
बारह बजे तक जागे रहने का आग्रह
मन को आया पसंद
वह जागता रहा टकटकी बाँधे
जैसे ही बजे बारह
मैंने किया आजादी को याद
नवाया सिर अपने शहीदों को
अचानक मुझे आने लगीं याद
उनकीं माताएँ
जिन्होंने बच्चों को नहीं
जन्मा था
नारंगी मन वाले फौलादियों को
कितना मुश्किल रहा होगा
अपने गुलाम दिन-रात
और गुलाम देहों में
आज़ादी के बीजों को
सिरजना
गुलाम स्कूलों में
आज़ादी की किताब पढ़ने के लिए
बच्चों को प्रेरित करना
रियासत की क्रूर सियासत में
अनुशासित बने रहना
श्रद्धा आँखों से बह चली थी
इतने में पलकों के धुंधलके में उभरती है
चाँदी की सूरत वाली
आज़ादी की मूरत
मैने बढ़ाया हाथ छूने को उसे
उसने पकड़ा दिया मुझे
अनुशासन का सुनहरा तार
मैं पूछती कुछ
उसके पहले ही वह चली गयी
आकाश की ओर
पन्द्रह अगस्त 2020 की अलसुबह
उठकर बाँट लिया मैंने
उसी तार को अपनों के साथ
कहते हुए आपस में
शायद बंधी है इसी तार के सिरे से
माननीय आजादी |

-कल्पना मनोरमा
 

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