दस दोहे
स्वर्ण
बाँसुरी होंठ धर,दिनकर गाता गीत
नाच-नाच
मन मोर-सी,किरण सिखाती रीत ||
किरन परी
उतरी नहीं,छोड़ पिया का गाँव
लहरों
पर किसने धरे, गेरू रंग के पाँव ||
धरती
के सम्मान में,किसने छेड़ी बात
दुश्मन
है या है सगा ,कहो,न बीते रात ||
अहंकार
के भाव को ,समझे अहमी जीव
कुम्भकार
माटी कहे, प्रेमी कहता पीव ||
समय न
करता चाकरी,और न खोले फंद
जो
जागे सो ही लिखे,नये-नये नित छंद ||
चींटी को मोती मिला,चली उठाकर पाँत
चखने बैठी
जो उसे, टूटे जो थे दाँत ||
घी
खाने की चाह में, बदली सुथरी चाल
रामधनी
रोगी बना,जीवन हुआ हलाल ||
ख़ुद को
नीचा समझकर,चलता कछुआ धीर
कर
देता ऊँचा उसे, नभ,धरती बलवीर ||
मेढक
उछला प्रेम से, समझा कूप विशाल
भेंटा
सागर से पड़ा,पिचके फूले गाल ||
कौन
कहे,किससे कहे,अंतर मन की पीर
ढूँढा फिर-फिर जान दे,मिला नहीं गम्भीर ||
***
Comments
Post a Comment