मन चंगा तो कठौती में गंगा



सुनो,अपना काम आज जऱा जल्दी निपटा लेना कामता जी का बेटा अस्पताल में एडमिट हो गया है उनको सांत्वना देने चलना है |” नवीन ने पत्नी से कहा और अखबार पढ़ने लगा |
चलो जी, मैं तो तैयार हूँ |” थोड़ी ही देर में पत्नी सज-धज कर हाज़िर हो गई|
अरे ! कहाँ जा रही हो जो इतनी तैयारी...?”
देख नहीं रहे, इस समय में कहीं जाने को मिलता भी है | अब जब बाहर निकल ही रहे हैं तो इतनी तैयारी तो बनती है यार !”कहते हुए नवीन की पत्नी बेफ़िक्री में अपनी साड़ी ठीक करने लगी |
इतना बहुत नहीं, बहुत ज्यादा है | जाकर लिपस्टिक पोंछ कर आओ |” झुँझलाते हुए वह बाहर निकल गया और रास्ते भर मौन पकड़े चलते रहा |
श्रीमती जी, कामता जी का घर आ गया है | वहाँ जरा कम ही बोलना |”
आप कहें तो मैं यहीं से लौट जाती हूँ |”
पत्नी ने लिपस्टिक का गुस्सा निकालते हुए कहा तो नवीन ने होंठ पर उँगली रख चुप रहने का इशारा किया |
आइये आइये नवीन जी, आपको देखकर अच्छा लगा |”
मैं आया ही इसलिए हूँ दोस्त ! आप चिंता मत कीजिये ईश्वर सब अच्छा करेगा |”
नवीन के शब्द कामता को साहस देने लगे थे पति के मन की राहत जब चेहरे पर दिखने लगी तो पत्नी नवीन के मना करने पर भी उठकर चाय बनाने चली गई |
हुआ क्या था बच्चे को कामता जी ?”नवीन ने चिंतित स्वर में पूछा |
वही तो पता नहीं,आज दूसरा दिन है लेकिन अस्पताल में कोई बता ही नहीं रहा है कि उसको हुआ क्या है|”
धीरज रखिये सब अच्छा होगा |”
नवीन अनेक उदाहरण देकर बताता रहा कि उनका बच्चा भी हर हाल में ठीक हो जाएगा | बातें करते हुए काफ़ी समय बीत चुका था इसलिए नवीन ने चलने की मौन इच्छा जताई तो कामता जी ने भी हाँ में सिर हिला दिया |
ध्यान रखना नवीन जी अपना और परिवार का | वक्त सच में बहुत बुरा चल रहा है |”
कामता जी की बात पर नवीन बोलना चाहता था किन्तु उसकी पत्नी बोल पड़ी।
अच्छा है भाई साहब ! अभी और ऐसा ही चलता रहे कितना मज़ा आएगा!”
सभी भौंचक होकर उसकी ओर देखने लगे | कामता जी की पत्नी ने कुछ कहने के लिए मुँह खोला ही था तब तक नवीन की पत्नी फिर बोल पड़ी |
कम से कम इसी बहाने लोगों का बैंक बेलेंस तो बढ़ रहा है न! क्योंकि न बच्चों की डिमांड न ख़र्चा।”
नवीन ने अपना माथा पकड़ लिया |


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