पिता
जब भी मिला बेटियों को
तो उन्होंंने हमेशा ही चुना
पिता को
माँ ने कर लिया सन्तोष बेटी की
सम्वेदनशीलता पर ही
माँ करती रही खमोश तीमारदारी
रात -दिन
उन बेटियों की जो लड़तीं हैं लड़ाई
पिता के लिए मांएं देतीं रहीं हैं श्रेय उनका
पिता को
वक्त आया जब बेटी के अलग होने का
तो चुुुने हुए पिता ने
देकर दहेज़ खींच लिया अपना भर
अपनापन
चुपके से डोली में बैठाते हुए
हो गेन बेटियाँ उनके लिए दूसरी
तब बेटियों द्वारा उपेक्षित माँ ने भर दिया
अतिरिक्त अपनापन
नहीं होने दिया एहसास कभी उनको
पराये होने का
विदाई के बाद
माँ बिलखती रही बिना खाए-पिए
कोने-अंतरे
और चुना हुआ पिता
सोया बेंचकर घोड़े
भेज कर बेटी को पराये घर
पुत्र भक्त पिता |
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