माँ चुप क्यों हो
कुछ बोलो न
अपने मन की पीड़ा को
मेरे आगे खोलो न
कर्तव्य निष्ठ की बेदी बन
तुमने अपने को सुलगाया
धीरे-धीरे जली
सुवासित सदन बनाया
मंत्रों सी गुंजित होती
जब-जब तुम आँगन में
मेरा मन लयबद्ध
गीत गाने लग जाता
अपने मन की पीड़ा को
मेरे आगे खोलो न
कर्तव्य निष्ठ की बेदी बन
तुमने अपने को सुलगाया
धीरे-धीरे जली
सुवासित सदन बनाया
मंत्रों सी गुंजित होती
जब-जब तुम आँगन में
मेरा मन लयबद्ध
गीत गाने लग जाता
मेरी मुसकानों में
ढूंढा था तुमने सुख अपना
अब क्यों चुप हो
कुछ तो बोलो न
ढूंढा था तुमने सुख अपना
अब क्यों चुप हो
कुछ तो बोलो न
हर बुरी बला के आगे बनती
ढाल रही
मेरे हर छोटे कृत्यों पर हुई
निहाल बड़ी
उत्साह तुम्हीं से सीखा मैंने जीने का
ढाल रही
मेरे हर छोटे कृत्यों पर हुई
निहाल बड़ी
उत्साह तुम्हीं से सीखा मैंने जीने का
वो हुनर तुम्हीं से आया मुझमें
जिज्ञासा सिरहाने रखने का
अब क्यों चुप हो
कुछ बोलो न
बेबस हुईं भावनाओं को
मेरे आगे खोलो न
कुछ बोलो न
बेबस हुईं भावनाओं को
मेरे आगे खोलो न
माँ तेरे मधुमय शब्द सुनाई
जब ना पड़ते
मेरे मन में शंकाओं के काले बादल घिरते
जब ना पड़ते
मेरे मन में शंकाओं के काले बादल घिरते
तू खुश होगी तब ही मैं जी पाऊँगी
तेरी ही आशीषों से जग में
कुछ नव नव कर पाऊँगी
इसलिए कह रही हूँ तुम अपनी
मुसकान बिखेरो न
तेरी ही आशीषों से जग में
कुछ नव नव कर पाऊँगी
इसलिए कह रही हूँ तुम अपनी
मुसकान बिखेरो न
हर पल हँसती रहो और ममता से बोलो न
अपनी सिथिल हुई वाणी को
मेरे आगे खोलो न
अपनी सिथिल हुई वाणी को
मेरे आगे खोलो न
मैंने अपने संग-संग अपने बच्चों को
भी उसमें बड़ा किया
एक-एक पल उन पर अपना वार दिया
सोचा था गरिमा लेकर बच्चे
उतरेंगे जग में
अपने संग मेरा भी ऊंचा नाम करेंगे
अपने संग मेरा भी ऊंचा नाम करेंगे
पर हाय विधाता !
तूने ये क्या कर डाला ?
मेरे इतने प्यारे बच्चों को
शैतान बना डाला
तूने ये क्या कर डाला ?
मेरे इतने प्यारे बच्चों को
शैतान बना डाला
अब नारी की इज्जत है ना ही
महतारी की
इसलिए बताओ बेटा
इसलिए बताओ बेटा
अब मैं क्या बोलूँ ?
अपनी चुप्पी को बोलो कैसे तोड़ूँ
उनके कृत्यों ने अनगढ़ ताले
से मुख पर जड़ डाले
अब तुम्हीं बताओ
कैसे अपना मुख खोलूँ ?
उनके कृत्यों ने अनगढ़ ताले
से मुख पर जड़ डाले
अब तुम्हीं बताओ
कैसे अपना मुख खोलूँ ?
४.७.२०
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