मरने के बाद नहीं
मरना
एक शब्द नहीं
नाम था गाड़ी भरडर का
थरथराहट का मेरे लिए
जब -जब कहा था माँ ने
मत मचाना शोर
नहीं रहे हैं फलाने बाबा
गाँव में
मन बन जाता था एकदम चट्टान
लगने लगते थे पेड़ उदास
धूप मुरझाई हुई
लगती थी शामें डरावनी
दीये की रोशनी में पड़ती अपनी परछाईं
लगती थी जरूरत से
ज्यादा बड़ी या सिकुड़ी हुई
हो जातीं थीं जाने -अंजाने ही
प्रारम्भ प्रार्थनाएँ
कुछ भी हो जाए ईश्वर
मेरी माँ को
कभी मत बुलाना अपने पास
उस दिन माँ अचानक लगने लगती थी
प्यारी से भी बुहत प्यारी
कीमती हीरा
फिर एक दिन
माँ भी सभी की तरह
चली गई बादलों को धकेलते हुए
स्वर्ग की ओर
किसी ने नहीं कहा
मुझसे कुछ भी छोड़ने के लिए
किसी ने नहीं कहा कि शोर मत मचाओ
नहीं रही हैं .....माँ
फिर भी
छूट गया सब कुछ
मेरे हाथों और मन से
जो था मौत और माँ से जुड़ा हुआ
साथ में छूट गया गाड़ी भर
डर भी
जानकर ये कि मौत
मरने के बाद नहीं
डराती है
जिन्दा व्यक्ति को ।
-कल्पना मनोरमा
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