कुंडलिया छंद



सेवा का व्रत हृदय ले,निकले हैं कुछ वीर
ईश्वर उनको साधना, चुकें  न तरकश  तीर 
चुकें न तरकस तीर, व्यधियाँ डरकर भागे
जीवन जीते  जंग,मुकुट  सिर  सुंदर  साजे
करते हैं  जो   काम, मिले  उनको  ही मेवा
काँटों की  है  राह, करे  जो  नियमित सेवा।।

-कल्पना मनोरमा

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