रेत हो जाना



दरिया के हाथों में
नहीं दिखाई पड़ती है
छैनी-हथौड़ी या
तलवार

किन्तु वह फिर भी
काटता आ रहा है पत्थरों को
महीन-महीन लगातार
सदियों से

दर्द की आगोश में
रहकर भी
नहीं निकलती है चीख़
पत्थरों के होठों से
कभी भी

क्या रेत हो जाना
इतना सहज है  |

-कल्पना मनोरमा 

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