कुण्डलिया छन्द


अपना घर मन बाँधता, हर लेता सब पीर
चाहे  संसारी   रहे , चाहे    रहे    फ़कीर
चाहे   रहे    फ़कीर, चैन मन में भर देता
देता है दिन-रैन, स्वयं,कुछ भी नहिं लेता
कहे कल्पना सोच,जीव का सच्चा सपना
जैसा भी हो रूप,मिले सबको घर अपना ।।
-कल्पना मनोरमा
4.6.20


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