जिंदगी


जिंदगी का भले सख्त हो काफ़िया
झोपड़ी के दिए को नहीं हारना |

चाँद पूनम का हो याकि हो दूज का,
सीख लेता गगन के नियम क़ायदा |

तार चिट्ठी न कोई, मेरे नाम की,
ऱोज गलियों में क्यों आ रहा डाकिया |

ईंट पर ईंट को कुछ रखो इस कदर ,
बन सके सीड़ियों का सुखद बाक़िया |

लोग लिखते रहे हीर की दांस्ता ,
‘कल्प’ लेती रही अश्क का जायज़ा |

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