घोंसले की बुनाई
एक घोंसले की बुनाई में
बुन देते हैं पंछी
तिनकों के साथ -साथ
अपने कई महीने ,दिन,घण्टे,मिनट और
अपने पंख भी
फिर भी नहीं देखते हैं
उनके जाए हुए लाडले उन घोंसलों की ओर
उनकी नजर में आती है
बस माँ की चुग्गे से भरी हुई
चोंच
वो भी तब तक
जब तक कि हो नहीं जाती हैं
उनकी अपनी चोंचें मजबूत
फिर एक दिन शाम को
लौटते हैं पंछी
चुग्गे से भरी चोंच ले
अपने घोंसले में
डाली पर पसरी नीरवता देख
वे होते हैं हैरान
तलाशते रहते हैं कई दिनों तक
अपनों को
लेकिन बच्चे नहीं लौटते
थक हारकर वे कर लेते हैं
स्वयं को पुनः व्यस्त
दूसरे घोंसले की बुनाई में
और ऐसा करना आता है
सिर्फ
पक्षियों को ।
-कल्पना मनोरमा
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