मैडम कपूर


घर में यदि किसी की अहमियत थी, तो वो था एक इम्पोटेड काला अनेक जेबों वाला पर्स और एक गोदरेज | पर्स में बैंकों के भांति-भांति के कार्ड रहते और गोदरेज में मैडम कपूर के मैंचिंग कपड़े और सेंडिल |
इसके अलावा पूरा घर तरह-तरह के नौकरों के हवाले से चलता था | मैडम कपूर जैसे ही सोकर जागतीं, नौकरों में जैसे चाबी भर दी जाती |
“फिर आज इनको क्या हो गया है जो सारे नौकरों की अचानक छुट्टी कर दी?” ड्राइंगरूम के पर्दे अभी फ़िश-टेंक में तैरती मछलियों से बातें कर ही रहे थे कि अचानक ज़ोर-ज़ोर से कुकर चिल्लाने लगा |
उसका चिल्लना नहीं…… मैडम कपूर का रसोई की ओर दौड़कर जाना घर की हर वस्तु को अचंभित कर रहा था |
“क्या हुआ बाबू को ?” मैडम कपूर ने दाल के पानी से नहाए कुकर को पुचकारा तो टाल पर रखे धूल खाये बर्तन भी उनकी ओर लटक-से पड़े |
माँ का दिया, लस्सी का गिलास तो आँख मूंद, उनकी गोद में कूद ही पड़ा | उसे ऐसा करते देख सिंक में पड़ी कढ़ाही कराहने लगी | नई-पुरानी-झाडुओं में धक्का-मुक्की होने लगी |
“किचन-गार्डन ” की खिड़की पर लटके रंगे-पुते अकड़े रूमाल फ़र्श पर गिर एढियाँ रगड़ने लगे |
रसोई में रखी हर वस्तु मानो मैडम कपूर के हाथों का कोमल स्पर्श पाने को मचलने पड़ी थीं |
मौक़ा पाते ही हवा ने भी खिड़की से बोगनबेलिया की एक पतली-सी फुनगी को ऐसा धकेला कि वह मैडम कपूर के बॉबकट बालों में जा फंसी |
रसोई का उतपात देखा नहीं जा रहा था । मैडम कपूर ने अपने कंधे झटकते हुए दहाड़ा, “यू आल कीप क्वाइट !” सुनते ही फ्रिज सहम सत्र रह गई लेकिन ....
“क्या हुआ बीवी कपूर ?” पति ने पूछते हुए अपने दो जोड़ी गन्दे कपड़े, उनकी ओर उछाल दिये |
इनका मैं क्या करुँ ? झल्लाते हुए रसोई से आव़ाज आई |
“आपका जो मन हो बीवी कपूर |”
पति की निश्चिंत आव़ाज ड्राइंगरूम की ओर मुड़ चली थी।
रसोई, गृहयुद्ध के अंदेशे से थरथरा उठी | बेलन लुढ़कते हुए सिलेंडर के पीछे जा छिपा | चीमटा होंठ दवाये गैस स्टोब के नीचे खिसक गया |
“मिस्टर कपूर आप क्या सोचते हैं, ? ये मज़ाक का समय है | बाहर महामारी फैली है और घर में दमघोंटू काम की बीमारी | ये इक्कीस दिनों का लॉकडाउन क्या सिर्फ़ मेरे मत्थे पर मढ़ा जाएगा ?”
“ऐसा किसने कहा ? बीवी कपूर!
चलो , मैं चलता हूँ आपके साथ,इक्कीस दिनों में अभी सिर्फ़ दो ही दिन निकले थे ।
मैडम कपूर! ने ऐसी गंभीर मुद्रा बनाई कि मिस्टर कपूर पानी-पानी हो गए

Comments

Popular posts from this blog

एक नई शुरुआत

आत्मकथ्य

बोले रे पपिहरा...