वसंत

                                                                                        


वसंत की आहट है 
या शोर है पतझड़ का 
कहना कठिन है  

वैसे तो कर दिया है
दिशाओं ने रँगना आरम्भ 
अपने होंठों को
भोर भी रचने लगी है अल्पनाएँ 
क्षितिज की मुँड़ेर पर 

किन्तु फिर भी 
वृक्षों के खुशनुमा गलियारों से 
आ रही है सन्नाटे की 
अजीब आवाज़ें 
क्या वृक्ष भी रोते हैं क्या 

बिछुड़न की चोट से 

वसंत के आदान -प्रदान 
की ये रीति नहीं 
आती समझ 
नए जन्में पौधों को ।

-कल्पना मनोरमा 

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