लौट गए पैदल

गाड़ी में बैठ जो आए थे गाँव से
लौट गए पैदल वे 
आँसू ले आँख में।

मिट्टी की देहरी पर 
फूँस की छानी थी
कर्जे की रोटी में 
शाह की मनमानी थी
यही सोच लेकर सब 
महानगर आये थे
शूरवीर ऐसे, लगा
मेहनत के जाये थे।

नापी थीं सड़कें जो दौड़ -दौड़ पाँव से 
लौटाया खाली बस
दुख देकर काँख में।

देहाती बोली में याद
लिए खेत की
यादों की पोटली में 
बात बची रेत की
कभी नहीं सोचा था 
जाएँगे लौटकर
इसी लिए आये थे 
घर-कुनबा छोड़कर

काँप रहा गाँव जो साथ लिया छाँव से
दौड़ चले देहाती 
घाव लिए पाँख में ।।

Comments

Popular posts from this blog

कवि-कथानटी सुमन केशरी से कल्पना मनोरमा की बातचीत

कितनी कैदें

आत्मकथ्य