दोहे
चला पथिक पथ मोड़कर,नज़रों के उस पार
कर्म गवाही दे रहे, था जीवन त्योहार ।।
कविता बेबस गाय-सी ,हाँकें फिरते लोग।
मर्म न जाने काव्य का, ले बैठे हैं रोग ।।
गांधी के सिद्धांत को, वानर रहे सँवार
तीन बुराईं छोड़कर, जीत रहे हर वार ||
लघुता ने जब उचक कर ,की प्रभुता से बात
प्रभुता थोड़ी झुक गई, लख लघुता का गात।
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