बीस साल का लड़का

आज की जनधारा 2025 के प्रेम विशेषांक में प्रकाशित कहानी....! चोटियों से गिरकर खाइयों में पड़ा था। मनोज आकर पूछने लगा— ” तुम मरते-मरते बच कैसे गए.. ?” आप सोचेंगे कौन मनोज… ? मनोज मेरा मित्र! मेरा यार ! हम दोनों इसी गाँव में पले-बढ़े। तालाब नहाए। सिघाड़े तोड़े। जामुन खाए। पुजारी कक्का के खेत से गन्ने चुराए और चूसे। हमारी आवारा कफलिया का सरदार मनोज , कमाऊ निकल गया..! वह जिद्दी और जुनूनी रहा हमेशा। जो चाहा , जब चाहा , हासिल कर लिया। मुझे हताश देखकर वह फिर बोला— “ तुम रुआँसे क्यों बैठे हो ?” “ बस , जो है– सो ठीक ही है। ” मैंने भी कह दिया। वह रूठ कर उठने लगा। दो वर्षों के बाद मुझे कोई अपना-सा मिला था। मैंने चिरौरी कर बिठा लिया। मनोज ने सहारा देकर मेरी पीठ से तकिया लगा दिया। दाहिने पाँव में घुटने तक प्लास्टर चढ़ा था। किसी तरह कोहनी पर टिक कर मैं आपबीती सुनाने लगा। मनोज बोला– ” भुवन रस नहीं आ रहा। गाँव की नापो यार! ” “ तीन गाँव...