करवाचौथ : स्त्री के भीतर की सजग प्रेम यात्रा
करवाचौथ : स्त्री के भीतर की सजग प्रेम यात्रा — कल्पना मनोरमा आज तक करवाचौथ को सामान्यतः “पति की दीर्घायु” के लिए किए जाने वाले व्रत के रूप में ही देखती और मानती आ रही थी। पर आज जब व्हाट्स स्टेटस और इंस्टा रील्स में स्त्रियों की मेंहदी-रची हथेलियाँ देखीं, तो मन में एक प्रश्न कौंधा — क्या यह व्रत स्त्री केवल पति की दीर्घायु के लिए करती है? फिर जब इस पूरे वाकये को स्त्री-दृष्टि से देखा, तो एहसास हुआ कि यह व्रत दरअसल स्त्री के स्वयं के अस्तित्व, अपने प्रति प्रेम की परिभाषा और सौंदर्यबोध की पुनर्पुष्टि का भी उत्सव है। जब स्त्री सुबह से बिना कुछ खाए-पिए, संयमपूर्वक सोलह श्रृंगार और पूजा की तैयारी करती है, तो वह केवल पति के जीवन की रक्षा हेतु ही नहीं, बल्कि अपने भीतर के प्रेम, धैर्य और सौंदर्य की ऊर्जा को भी पुनः जागृत कर रही होती है। व्रत अनुष्ठान के प्रति किए गए संयम में कहीं न कहीं एक गहरी प्रतीकात्मकता छिपी है। व्रत स्त्री के भीतर के “अधैर्य” को शांत करने की साधना है। वह अपनी भूख और प्यास को थामकर जीवन के प्रति अपनी दृढ़ता को पुनः परिभाषित करती है। वह जानती है कि प्रेम केवल प...