आने वाले परिवर्तन की कहानी - गुनिता की गुड़िया
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इसी अंक में प्रकाशित कहानी |
वनमाली कथा पत्रिका के अक्तूबर अंक में आई कहानी "गुनिता की गुड़िया" आज अंतर्राष्ट्रीय विश्व मैत्रीय मंच पर "दो कहानी, दो समीक्ष" कार्यक्रम में पढ़ी गई और उसपर चर्चा हुई। "गुनिता की गुड़िया" कहानी की समीक्षक थीं Shakun Mittal जी!
हार्दिक आभार के
साथ उनकी समीक्षा लगा रही हूं।
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गुनिता की
गुड़िया कहानी पर समीक्षा शकुंतला मित्तल जी
कल्पना मनोरमा
जी की कहानी "गुनीता की गुड़िया" तीन पीढ़ियों के संबंधों, चिंतन में आने वाले परिवर्तन या कहना चाहिए अंतराल और बदलती हुई सोच के
ताने बानों से बुनी हुई नारी विमर्श की बहुत ही खूबसूरत कहानी है ,जिसके पात्रों का गठन बहुत मनोवैज्ञानिक ढंग से और खूबसूरती से कल्पना
मनोरमा जी ने किया है।
यथार्थ धरातल पर
स्त्री विमर्श का एक पहलू यह भी है कि स्त्री अपने बुनियादी रूप में न्यूनतम
मानवाधिकार एवं अस्मिता के लिए जूझ रही हैं । कहानी में गुनिता ने कन्या भ्रूण
हत्या में शामिल पिता और घर में अधिकारों से वंचित गूंगी बहरी बनी, घर में कैद प्रताड़ना सहती, न्याय से वंचित घुट घुट
कर जीने को विवश माँ सुजाता को देखा है।माँ सुजाता ने ही अपनी संघर्ष यात्रा से
आत्मविश्वास अर्जित कर गुनिता को आत्मनिर्भर बना स्वप्न देखने और उसे पूरा करने की
शक्ति शिक्षित कर आर्थिक स्वावलंबन के रूप में दी है।
पहला ही वाक्य 'मां
बच्चों का बसंत होती है' मां का बच्चों के जीवन में महत्व और
विशेष रुप से बचपन में उनके जीवन में मां का जो स्थान होता है उसे दर्शाया गया है।
कहानी के आरंभ
में ही हम देखते हैं कि वान्या का संबंध अपनी मां मिताली और दादी गुनिता के साथ
बहुत ही सुंदर है। वह कोई भी बात निसंकोच दादी अन्ना यानी गुनिता और ममा मिताली के
साथ कर सकती है। यहाँ तक कि मिताली आस्ट्रेलिया से आई है तो वान्या के लिए एक ऐसी
गुड़िया लाई है जिसका पेट फूला हुआ है और वान्या के जिज्ञासा प्रकट करने पर मां
मिताली उसे गुड़िया के पेट फूलने का कारण उसका प्रेग्नेंट होना बताती है।
मिताली का जिप
खोल कर दो बच्चे निकाल कर दिखाना गुनिता को अटपटा लगता है पर वह मिताली को चाह कर
भी रोकती नहीं है।
ऐना,जो
कि मेड है उसे इन्स्टा पर प्रेगनेंट डॉल वाली रील दिखाने की बात वान्या को याद
कराती है।
यहां जो खुलापन
है,जो सब कुछ ओपन है,वह विचारणीय है।आज के बच्चे सब कुछ
जानते हैं।
वान्या डॉल की
डिलीवरी कराती है।मां , दादी गुनिता सभी उसमें सम्मिलित होते हैं।यहां कहानी
की बोल्ड अभिव्यक्ति शालीनता के शब्दों के आवरण में की गई है। यह खुलापन ,इस दृष्टि से सराहनीय है कि बच्चे अपनी जिज्ञासाएं शांत करने के लिए भटकते
नहीं हैं। उन्हें सही और वास्तविक ज्ञान मिल जाता है, तो
उनमें स्वस्थ दृष्टिकोण विकसित होता है।पर यदि उन्हें सही बात न पता चले तो वे
समवयस्क नासमझ मित्रों से या फिर बाहर अन्य तरीकों से पता करने की कोशिश करते हैं,
जिससे उनके भटकने का अंदेशा रहता है।पर विचारणीय यह भी है कि कितना
ज्ञान??
दादी गुनिता
आरंभ में इस खुलेपन को पसंद नहीं करती पर बाद में वह भी इसमें सम्मिलित हो जाती
है। गुनिता को अपना बचपन भी याद आता है,जब मां से लिपटना चाह
कर भी अबूझे संकोच से भर ऐसा नहीं कर पाती। दादी का भय गुनिता में भी है और गुनिता
की मां में भी।इस भय को व्यक्त करता यह वाक्य दृष्टव्य है।
"मैं खम्भे की ओट
से माँ को देख रही थी,और माँ मुझे। लेकिन बोल कोई नहीं रहा
था"
यह संकोच पहले
माँ बेटी के संबंधों में रहता था।उसका कारण घर के बड़े बुजुर्ग भी होते थे।प्रेम
कम नहीं होता था दोनों में पर स्वीकार करने और दिखाने में संकोच रहता था।
यहीं पर यह भी
कहा गया कि
मां नहाकर जब
निकली तो अपनी सी लगी मुझे।पास आ कर उन्होंने मेरे सिर हाथ फेरा।अबोला प्रेम दोनों
के बीच थरथरा उठा था।फिर थोड़े दिनों में धीरे धीरे मेरी झिझक क्षीण होती चली
गई।यानी मां बेटी को भी पहले खुल कर बात करने में समय लगता था। उस पीढ़ी में मां
भी संकोच से भरी रहती थी।
पर इस कहानी में
यह बड़ों के सामने व्यक्त होने वाला मात्र संकोच ही नहीं है वरन् सास और पति का भय
है।भ्रूण हत्या का अभिशाप हमारे समाज में बरसों से है और लड़की को जन्म दे भी दिया
जाए तो उसे अवांछित माना जाता है। इस भाव को बहुत मार्मिकता से कहानीकार कल्पना
मनोरमा जी ने दर्शाया है।
दादी के रूप में
गुनिता के संबंध अपनी बहू मिताली और पोती वान्या से मधुर हैं पर गुनिता याद करती
है कि उसकी दादी शिकायत का कोई मौका जाने नहीं देना चाहती।वह हर समय यह जतलाना
चाहती है कि मां ने यानि बहू ने उसकी पोती गुनिता को दो पैसे की अक्ल भी नहीं
सिखाई।
बात चीत के
दौरान मां के हंसने पर गुनिता को मौका मिलता है और वह अपनी बनाई मलमल की गुड़िया
मां के हाथ पर रख देती है।बच्ची गुनिता शाबाश सुनना चाहती है पर मां पहले उदास और
फिर क्रोधित हो उठती है मां कसी हुई लाल चोली देख कर परेशान हो उठती है।
ममतालु स्वभाव
में इस आकस्मिक परिवर्तन को बच्ची गुनिता के लिए समझना सरल नहीं है।
मां बहुत से
प्रश्न करती है, जिनमें उसका भय ध्वनित हो रहा है । गुड़िया की फूली
फूली छाती,चोलीदार गुड़िया, गुनिता का
बड़े होना...... यह सब मां में भय भरता है क्योंकि पहले शारीरिक परिवर्तन या विकास
को भी हौव्वा माना जाता था
।और यहां तो
सुजाता के पति और सास पूरी तरह लड़कियों के विरोधी हैं
अबोध गुनिता समझ
न पाने के कारण जब यह बताती है कि गुड़िया की छाती में दो काबुली चने रखने से चोली
की फिटिंग बहुत अच्छी बनेगी यह उसे माला की भाभी ने बताया था और ऐसा करने से सच
में गुड़िया बहुत सुंदर लगने लगी। यह सुनकर गुनिता पत्थर की मूरत में बदल बदल गई
थी।
बच्चे के भोलेपन
को और मां के भय को कहानीकार ने बहुत सरलता और स्वाभाविकता से प्रस्तुत किया है।
ऐसे लगता है कि कोई रील चल रही है। पाठक कथानक और पात्रों के साथ एकाकार सा हो
उठते हैं।
गुड़िया के
ब्याह की बात सुनकर मां क्रोध में आ बच्ची गुनिता की पीठ पर घूंसे बरसाना शुरू कर
देती है।
निर्मला चाची
यानी मां की सुख दुख की सहेली के आने पर मां उससे बात करते हुए बताती है कि उसने
गुन्नू की पिटाई लगाई है।
उस बातचीत से
पाठक को पता चलता है कि सास के पुत्र मोह ने मां की दो अजन्मी बेटियों को गिरा
दिया था,पर गुनिता को जन्म देने के लिए मां को संघर्ष करना
पड़ा और कुछ शर्तों पर गुनिता को जीवन मिला
वे शर्तें कितनी
सख्त और कठोर रही होंगी,यह इस वाक्य से पता चलता है
कान खोलकर सुन
लो सुजाता, इस लड़की को पैदा तुम कर रही हो लेकिन मेरी आंखों से
दूर रखना ।मूंछ का एक छोटा बाल भी टेढ़ा हुआ तो आंगन में दो कब्रें बराबर में खोद
पर अपने हाथों से जिंदा दफनाऊंगा। किसी को कानों-कान ये पता भी नहीं लगते दूंगा कि
जीती जागती दो औरतें चली कहां गईं आखिर?
सहेली से बात कर, सुजाता थोड़ा सहज हो कर गुनिता से बात करती है और यहां सुजाता हर संत्रस्त
नारी को मानो उद्बोधित करती लगती है।वह अपनी गन्नू से बात करते हुए हमारे समाज की
लड़की को ले कर घृणित सोच पर अपना क्षोभ व्यक्त करती है। साथ ही उसमें संदेश भी है
नारी सशक्तिकरण का।
'लोग गूंगी अंधी
लड़कियों की कामना करते हैं।'
यह मारक ,मर्म
बेधी वाक्य आज भी बहुत अंशों तक सत्य है।
आज भी हमारे
समाज में बहुत सी जगहों पर लड़की के आगे बढ़ते कदमों को रोकने की कोशिश जारी है।वह
आज भी प्रताड़ित है।इस शोचनीय स्थिति को व्यक्त करता यह वाक्य दृष्टव्य है
हर घर आज भी एक
सेल्यूलर जेल है और हर गुड़िया कैदी।
सुजाता केवल
भयप्रद स्थिति को ही उजागर नहीं करती,वरन गन्नू को अंधेरे
में रह कर भी उजाले से लड़ने को प्रेरित करती है और सीख देती है कि वह अपनी
गुड़िया को मान्यताओं की परिधि तोड़े बिना बड़ी बनाए और अपनी गुड़िया को यह सिखाए
कि वह सपने देखना कभी न छोड़े।
इन सब बातों से
कथानक का सच यह उभर कर आता है कि सुजाता ने स्वयं अंधेरों में रह कर गुनिता को
बढ़ा किया।पढ़ाया लिखाया।वह प्रिंसिपल पद से सेवानिवृत्त है। इतना ही नहीं उसके
संबंध अपनी बहू मिताली और पोती वान्या से इतने मैत्रीपूर्ण हैं कि वहां लड़की होने
के भय की छाया भी नहीं है।
कहानी का शीर्षक
पूरी तरह मूल भाव पर केन्द्रित है और संपूर्ण कहानी गुनिता की गुड़िया के
इर्द-गिर्द घूमती है।उसकी गुड़िया सामने आने पर सुजाता का भय,पति
और सास की कुत्सित, घृणित सोच का परिचय मिलता है। यहीं वह
अपनी गुड़िया जो हर घर की बेटी का प्रतीक है, उसे आत्मनिर्भर
बनाने का ही नहीं बल्कि सपने देखने, अंधेरों से लड़ने का
संदेश देती है जो गुनिता पूरी तरह उसका पालन करती है।
अतीत से गुनिता
को वान्या का यह वाक्य निकालता है,"अरे अन्ना आप
रोते हुए क्या कह रही हो? यूं बिकेम ए ग्रेट ग्रांड
मां।"
और वह वही सोच,जो
मां सुजाता ने उसे दी थी, वान्या को देती है कि तुम अपनी
बेटियों को इतना टैलेंटिड बनाना कि वे अपनी मनचाही उड़ान भी भरें और अपने पंख भी
बचाए रखें और हां उन्हें सपने देखना तो जरूर सिखाना।
यहां कहानी अपने
उद्देश्य की पूर्णता को प्राप्त कर लेती है। नारी विमर्श की इस अनूठी कहानी का
उद्देश्य नारी स्वातंत्र्य का संदेश देना है जो गुड़िया के माध्यम से लेखिका ने
बखूबी दिया है।
संवाद और भाषा
पात्रानुकूल तो है ही, साथ ही गहरे अर्थ लिए हुए सूत्रात्मक भी है। अंग्रेजी
शब्द कहानी को स्वाभाविकता प्रदान करते हैं।
लीक से हटकर अलग
अंदाज में लिखी कहानी के लिए कल्पना मनोरमा जी बधाई की पात्र हैं।
शकुंतला मित्तल
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