एक दिन का सफ़र कथा संग्रह पर सुप्रिया जी की टिप्पणी
आज का दिन कल्पना मनोरमा द्वारा लिखित कहानी संग्रह ' एक दिन का सफर ' के साथ बीतने वाला है. कल्पना एक बेहद संभावनाशील कथाकार हैं जो अपनी कहानियों में अपना सामाजिक - सांस्कृतिक परिवेश ढूँढती हैं. बेहद सहज सरल भाषा और कथानक को चुनकर वो गंभीर विमर्श रचती हैं. यह उनके लेखन की विशिष्टता है. कठिन लिखना आसान होता है और सरल लिखना बेहद कठिन, इसलिए हमें प्रेमचंद की भाषा उनके करीब ले जाती है. कल्पना भाषा और कथ्य के शिल्प को रचते हुए इस भाव का बहुत ध्यान रखती हैं. बारह कहानियों के इस संग्रह में वे स्त्री जीवन के उन मुद्दों या अनुभवों को शामिल करती हैं जो उत्तर भारत के मध्यम वर्गीय स्त्री के जीवन में बार - बार घटित होते हैं. कितनी कैदें, गुनिता की गुड़िया, हँसों जल्दी हँसों, पाहियों पर परिवार, जीवन का लैंड्सकेप इत्यादि कहानियाँ स्त्री शिक्षा एवं सामाजिक गतिशीलता, स्त्री गर्भ के बाज़ारीकरण, मध्यम वर्गीय कामकाजी स्त्री के रोजमर्रे की दौड़ धूप और प्रकृति के साथ स्त्री के संबंधों की गहरी पड़ताल करती है. भारतीय स्त्री विमर्श की सांस्कृतिक ज़मीन की कई तहें हैं और समाज के हर तबके, हर वर्ग, हर जाति और हर धर्म की स्त्रियां भिन्न-भिन्न स्तरों पर शोषण एवं उत्पीड़न को अपने जीवन में महसूस करती हैं... इसलिए भारतीय स्त्रीवाद इंटरसेक्शनलिटी (intersectionality) का विमर्श है. जिसे जाने - समझे बिना स्त्री प्रश्नों की शिनाख्त मुश्किल है. कल्पना इस अंतरसम्बन्ध को अपनी दृष्टि से तलाशती हैं. उनके लेखन के केंद्र में मध्यमवर्गीय स्त्रियां एवं उनके जीवन संघर्ष हैं. उन्हें इस कहानी संग्रह के लिए हार्दिक शुभकामनायें 🌹🌹🌹 विस्तृत समीक्षा जल्द ही आपके सामने होगी. आप ऐसे ही लिखती रहें...
अंत में उनकी ही कविता।
सुप्रिया पाठक
दुविधा और निराशा जब तुम्हें छलने लगे
तुम हरसिंगार बन जाना
गिर जाना धरती की गोद में
तुम्हारे गिरने की लय, उठने की नियति बनेगी
यह गिरना नियत से गिरना नहीं,
भरोसा होगा धरती पर
गिरने -उठने की फांक को समझना
राहतें यहीं कहीं पैबस्त मिलेंगी
जीवन वैसा ही होगा
जैसा देखना, समझना, जानना
चाहा होगा तुमने...!!
कल्पना मनोरमा
कल्पना मनोरमा जी को पहले भी पढ़ा है, उनकी कहानियाँ जीवन से जुड़ी होती हैं, उनकी पुस्तक से परिचय करवाने के लिए शुक्रिया!
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