देर कभी नहीं होती
आलस्य छोड़ अच्छे पाठक की तरह अब जिन किताबों को मैंने खरीदा है उन्हें और जो स्नेह स्वरूप सुहृदय लेखकों के द्वारा भेंट की गईं हैं, एक एक कर पढ़ना शुरू कर रही हूं। समय समय पर अपने अभिमत से अवगत भी करवाती रहूंगी। उसी क्रम में आज Asha Pandey जी की अधपढ़ी किताब #देर_कभी_नहीं_होती जो Bhavna Prakashan से प्रकाशित है, पुन: शुरुआत की है।
कहानी पढ़ते हुए मेरा पाठक मन कुछ बातों पर गहरे ध्यान देता है। जैसे कहानी
का शीर्षक, भाषा, शिल्प और कथ्य को प्रस्तुत करने के लिए लेखक के द्वारा कथोप कथन का
विश्वसनीय चुनाव और कथा का आरंभ और अंत।
इस लिहाज़ से अगर मैं कहूं तो आशा पांडेय जी की कहानियां पाठक को न सिर्फ़
बांधने में सक्षम हैं, बल्कि दर्द की महीन
किरचें पढ़ने वाले के सोचने और महसूस करने वाले मन में गहरे धंस जाती हैं। आपकी
कहानियों में दोनों धाराएं बराबर स्फूर्त चलती हैं। जितनी बाह्य धारा में दृश्य
क्रम से चित्रित होते हैं, उतनी ही कहानी की अंतर्धारा में
भी विश्वसनीयता होती है। देर कभी नहीं होती कथा संग्रह में भाषा की सहजता के साथ
कथ्यात्मक अर्थ की संशलिष्टता भी देखने को मिलती है। कहानी का आरम्भ जितना चुटीला
होता है, उससे अधिक कहानी का अंत मार्मिक होने के साथ
व्यंग्य की महीन धुन उसमें निहित होने के कारण पाठक की शांति में पलीता लग जाता
है।
"डेढ़ सेर चांदी" से लेकर "सूखता मौसम मुरझाते फूल" तक पाठक
को वे मुद्दे कहानियों में पढ़ने को मिलते हैं जो चाहे गांव का भोला दर्द हो या
शहर की धक्कम धक्का कर गिरने उठने की नीतियां या फिर महानगर की आत्ममुग्धता और फरेब
भरी दुनिया। आशा जी सभी को कथ्य बनाकर कहानियों में ढाल देती हैं।
साहित्य प्रेमियों को ये संग्रह जरूर पढ़ना चाहिए। अस्तु!
समीक्षा किसी पत्रिका ने मांगी है इसलिए पूरी समीक्षा यहां पोस्ट नहीं कर
रही हूं। इसी के साथ लेखिका को अनेक शुभकामनाएं और साधुवाद!
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