आज़ की सशक्त स्त्रियों की तस्वीर

 

चित्र: अल्पना आर्ट एंड कैफे 

आज़ की सशक्त स्त्रियों की तस्वीर....!

एक समय था जब स्त्री ने अपनी दादी, नानी, मां, बुआ और बहनों को अत्यधिक शोषित और पीड़ित देखा था। बहुत कोशिश करते हुए उसकी अगली पीढ़ी ने स्त्री को पोषित करने का ढंग बदला। समझदार स्त्रियों ने अपनी पुत्रियों को स्त्रीगत स्वभाव यानि करुणा, दया, संवेदना अपने भीतर बनाए रखकर आत्मनिर्भर बनने की सीख दी।

 

स्त्री बदली। उसका परिवार बदला।

 

जब तक स्त्री ने अपनी अस्मिता की बागडोर गही तब तक समय ने भी अपने में आमूलचूल बदलाव करना शुरू कर दिया और नतीज़ा गई सदी की स्त्री ने अपने मंतव्य को लक्ष्य तक पहुंचते हुए पाया।

 

ये आंकड़ा बड़ा नहीं था लेकिन एक उजास भरी कौंध और चिंगारी के रूप में इसे देखा जाने लगा। स्त्री अस्मिता की बात इस तरह से निकली कि स्त्री के जहन में घर कर गई और हमारे सामने बहुतेरे सबल स्त्री के उदाहरण सामने आते चले गये।

 

जब ये सब हो रहा था तब तक सदी बदल गई और तकनीकी आंधी ने दुनिया की तस्वीर बदल डाली। आज गांवों, नगरों महानगरों में स्त्री स्वातंत्र को रूढ़ीवादी मानते हुए स्त्री स्वच्छंदता की चाहना शुरू हो गई और तस्वीर आपके सामने है।

 

ये तसवीर स्त्री को पुरुष, लड़की को लड़का बना कर जीवन जीना सिखाने वाली स्त्री मां बेटी की है।

 

समकालीन सशक्त मां अपनी पुत्री को इस तरह सशक्त बना रही है कि वह उसे ही छलनी करने पर आमादा है। अस्मिता की लड़ाई का फल क्या ये हमने सोचा था?

आज़ की अवधारणा के अनुसार स्त्री अपने खंडित रूप को संवार कर उसे पूर्णता में देखने की अभिलाषी नहीं। और न ही पुरुष की शक्ति, मेधा, जुनून को धारण करने की आकांक्षा रखती है, आज की स्त्री पुरुष के बाहरी आवरण, क्रुर स्वभाव को अपनाकर पुरुष जैसी दिखना चाहती है।

 

ज़्यादातर माओं ने बेटियों के प्रति अपने संबोधन बदलकर मुन्ना, राजा, गुड्डा कर लिए हैं। क्या मुन्नी, रानी, गुड्डी में प्रेम पर्याप्त ध्वनित नहीं हो पा रहा था?

ऐसा बिल्कुल नहीं लगता कि जिस लड़ाई को हमारी पुरखिन स्त्री ने अस्मिता की लड़ाई बनाकर बहुत कुछ खोकर कुछ पाया था, उसे सहेजा का रहा है। बल्कि आधुनिक स्त्री स्वयं अपनी अस्मिता को धुंधला बना रही है।

 

क्या प्रकृति पुरुष बन सकती है? क्या धरती आसमान बन सकती है? तो स्त्री,स्त्री न बने रहकर पुरुष क्यों बन जाना चाहती है? क्रूरता स्त्री का मूल गुण नहीं है।

Think about it...!😒


 

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