कलयुग की सीताजी

 


CP दिल्ली में कलयुग की सीताजी। कलयुग इसलिए कहा क्योंकि त्रिजटा का स्थान अब मोबाइल ने पूरी तरह घेर लिया है।

त्रेता युग में जब जनकनंदनी एकांत में प्रेम और परिवार से दूर रहीं तब उनके एकांत और डरे हुए समय में त्रिजटा नामक राक्षसी उनके विश्वास और प्रेम को क्षय होने से बचाती रहीं।

यानी आज भी एकांत के नाज़ुक चेहरे को हमारी क्रूर यानी भावनात्मक इंद्रियां त्रस्त करने के लिए उतावली रहती हैं। हर वक्त हमारे मनोबल को तोड़ने में जुटी रहती हैं। कहते हैं न जिसने अपना एकांत संवार लिया, समझो उसने अपने जीवन को उन्मुक्त और सही दिशा की ओर मोड़ लिया।

तो मैं कह रही थी कि हमारी कुछ क्रूर यानी भावनात्मक इन्द्रियों में एक त्रिजटा नामक इंद्रिय भी होती है जो हमें सही गलत का बोध कराते हुए बाह्य और आंतरिक जीवन को सुरक्षा प्रदान करती रहती है, बस, मोबाइल ने उसी को मार गिराया है।

अब हम बेहद अकेले और निरीह होते जा रहे हैं। रावणनुमा भावनात्मक दवाब पड़ते ही हम टूटने लगते हैं।

चलते चलते थकने पर मुझे कहा गया कि मैं यहां बैठकर थोड़ा सुस्ता....!

 

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