रामजी की गउएँ

 


"रामजी की गउएँ " कहानी का कथांश.... स्वीकृत।

सुनो बेटा! मुश्किलों से भागना नहीं, डटकर मुकाबला करना होता है। याद करो बचपन में पड़ोस की लता आंटी का कुत्ता हमारे पीछे पड़ गया था और हम भाग रहे थे। कितने डरे और सहमे थे हम, फिर अचानक एक विचार मेरे मन में आया था कि जब कुत्ता हमें काट ही लेगा तो क्यों न हम एक बार खड़े होकर उसकी ओर घूरकर देखें। जैसे ही ये मैंने ये किया , कुत्ता दुम दबाकर पहले खड़ा-खड़ा भौंकता रहा फ़िर उल्टा पाँव भाग गया।

 

इस से कुछ समझे, दुनिया बुरी नहीं, लोगों की नियत बुरी होती है। और सबसे बड़ी बात ये कि हम उन्हें सुधार तो नहीं सकते और न ही अपना रास्ता बदल सकते हैं। तो हम जो कर सकते हैं, वह, अपने आप में स्थिर हो सकते हैं।

 

और जो तुम परीक्षा में पास-फेल की सोच कर हल्कान होते रहते हो, ये भी कोई जीवित रहने का मानदंड नहीं है इसलिए तुम्हें जो सीखना है वह, किसी भी स्थिति में अपने मन की बात सुनने की आदत डालना है।

 

लेकिन ये तभी होगा जब तुम संवेदनात्मक रूप से सचेत और जागरूक होगे क्योंकि मन भी बहुत ढुल-मुल चीज़ है ये खुद अपने ऊपर कई कई परतें ओढ़ लेता है। उनमें से सही तक पहुँचना और व्यवहार  में लाना, प्रतिदिन कुआँ खोदकर पानी पीने जैसा कार्य है पर अकरणीय नहीं। खैर,

 

एक बात और, बड़ा हो या छोटा तुम प्रश्न करना और उत्तर देना सीखो। झूठों मक्कारों के बीच में सच्चों को परखना सीखो। बस, है न आसान! जिंदगी को जिंदगी कहना? तो चलो उठो, कहीं घूमकर आते हैं।

 

कल्पना मनोरमा

 

Comments

Popular posts from this blog

एक नई शुरुआत

आत्मकथ्य

बोले रे पपिहरा...