प्रेम

 


बात हनुमान महाराज की नहीं, उन्हें तो पुराणों और भारतीय संस्कृति में अद्भुत और प्रणम्य बताया ही गया है।

बात समूह की है, रोशनी की है, हरियाली की है, पादपों के एक जुटता की है। रोशनी के महत्व को दर्शाने, बढ़ाने, दिखाने में अंधकार के समर्पण की है।

रात आने पर अंधेरा अगर मुकर जाए अपने अस्तित्व से तो क्या रात उतनी दयालु ,सहनशील और एकाग्र हो सकती है? सूरज का महत्व बड़ा हो सकता है?

तो बात अपने अस्तित्व में टिके रहने की होती है। अपने स्वरूप को सजाए रखने की होती है।

रोशनी जब उतरती है आसमान से तो वह अंधेरे को चीरती नहीं बल्कि बहुत अपनेपन से उसके मस्तक पर अपना हाथ रखती है और अंधेरा उसके प्रेम में पिघल जाता है।

जानते हो क्यों? क्योंकि प्रेम क्रियाशीलता को द्विगुणित करता है।

उसी तरह समूह के सौंदर्य को अगर देखा जाए तो आकाश में तारे, जंगल में वृक्ष, और हाथ में उंगलियों की एक जुटता शोभन है।

सोचो अगर हमारे हाथ में उंगलियां न होती या उनमें एक दूसरे के प्रति लगाव न होता तो क्या होता? बताने की जरूरत नहीं।

बात एकता में शक्ति की है, समय के दयार में जीवित बने रहने के भरोसे की है, जीवन के प्रति अपने से लगाव की है।

 

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