"पर्यावरण और साहित्य" पेंटिंग प्रयाग शुक्ल जी!
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| पेटिंग- प्रयाग शुक्ल |
"पर्यावरण और साहित्य" — प्रयाग शुक्ल जी के दृष्टिकोण में अंधेरा और उजाला
अंधेरे और उजाले के प्रतीकों के माध्यम से मनुष्य, प्रकृति और साहित्य के आपसी संबंधों को खोलता है। इसमें अंधेरा केवल रात का भौतिक घटक नहीं है, बल्कि “रात की मौलिक प्रतिक्रिया” के रूप में प्रस्तुत होता है, जिसे सबसे पहले संध्या पढ़ती है, फिर वृक्ष, और अंततः वह संवेदनशील लड़का, जिसके जीवन में संघर्ष और सपनों का मेल है। अंधेरा यहाँ एक सक्रिय, जीवंत सत्ता है—कभी भ्रमित करने वाला, तो कभी अनुभव और संवेदना का संचायक।
रचना का परिवेश गहरे पर्यावरणीय संकेतों से भरा है—समुद्र किनारे की नमकीन हवा, लहरों की शरारत, रेत पर बिखरे शंख, तड़पती मछली को जल में लौटाना—ये दृश्य लेखक की प्रकृति-प्रेमी दृष्टि और जीव-जंतुओं के प्रति करुणा का प्रमाण हैं। यहाँ प्रकृति को मात्र पृष्ठभूमि नहीं, बल्कि जीवन का सहचर और नैतिक चेतना का स्रोत माना गया है।
साहित्य की भूमिका को रचना अत्यंत सटीक शब्दों में व्यक्त करती है—“साहित्य अँधेरे में जन्मता है और उजाला फैला देता है किसी के मन में।” यह कथन बताता है कि रचनात्मकता का बीज अक्सर संघर्ष, एकाकीपन और भीतर की अंधेरी गलियों में पनपता है, और वही साहित्य, शब्दों के माध्यम से, दूसरों के जीवन में प्रकाश भर देता है। कवि जब अंधेरे को कविता में उतारता है, तो वह भयावह नहीं रह जाता; वह स्मृतियों की रेत या अनपढ़ा संदेश बनकर संवेदना का माध्यम बन जाता है।
मानवीय रिश्तों के स्तर पर, पिता की साइकिल पर बैठी किशोरी, मोटरसाइकिल वाला लड़का, और उनके बीच की सूक्ष्म भावनाएँ, समाज और व्यक्तिगत जीवन की परतें खोलती हैं। यह अंश बताता है कि संवेदनशीलता केवल प्रकृति तक सीमित नहीं, बल्कि मनुष्यों के आपसी संवाद और लज्जा-प्रेम में भी रची-बसी है।

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