कहानी है कि खत्म नहीं होती
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लेखक- हरीदास व्यास |
लेखक ने अपने कथा संग्रह का नाम ‘कहानी है कि खत्म नहीं होती’ रखा है। इसके पीछे उनका मंतव्य नहीं पता लेकिन ये शीर्षक जीवन से बहुत मैच खाता हुआ लग रहा है। जीवन की कहानियाँ भी इसी तर्ज पर चला करती हैं।
मैंने कहानीयां पढ़ते हुए वैसा ही पाया जैसे लेखक ‘उस
विमर्श के बाद’ के बहाने अपनी बात लिखता है। हरिदास व्यास जी ने अपनी बात में
कहानी के कथ्य, लेखन, लेखक जगत में उठती-गिरती
बहिकहियों पर निशाना साधा है या ये कहें कि केंद्र में रखा है।
लेखक की अपनी
बात से– बहुत ईमानदारी से अपनी कहानियों पर गौर किया तो हासिल हुआ कि मैंने अपनी
अधिकतर कहानियों में जाने-अनजाने नवीन – कथानकों को न्यूनतम रखने की कोशिश करते
हुए अपनी कहन–प्रविधि से ही रचना को आगे बढाने की कोशिश की है।
और ये बात
बतौर-ए पाठक मुझे भी लगी कि लेखक बेमतलब मुहावरों, लोकोक्तियों या
विशेषण यानी चमकदार वाक्य विन्यासों से अपनी कथाओं को दूर रखता हुआ कथा बुनता चलता
है। कथ्य की गुंजाइश से कहानी जितना आकार ग्रहण करती है, वह
स्वत: विस्तार लेती चलती है।
शीर्षक कहानी
‘कहानी है कि खत्म नहीं होती’ की ध्वनि भी बड़ी उलझी-संघर्षयुक्त और तान्वयुक्त है।
लेकिन कहानी बोझिल नहीं है। कभी पुरुष आवारगी की कहानी पढ़कर मन में क्षोभ उत्पन्न
हुआ करता था कि कैसे कोई पुरुष एक समय में कई-कई स्त्रियों की जिंदगियों से खिलवाड़
कर कई जीवन एक साथ तबाह कर शान से घूमता है…? इस कहानी में उसी
बर्ताव को स्त्री साकार करती हुई दिखती है।
कहानी में
स्त्री की जुबान से– जो असंभव है, मैं वही चाहती हूँ। आशीष,
तुम्हारी अपनेपन से भरी आवाज़,कोमल व्यवहार,
निर्दोष चेहरा, मेहरा की गंभीर आँखें, मिस्टर नागपाल की जिन्दादिली, मेरे अपने पति का
भोलापन – सभी एक साथ चाहती हूँ।
यानी लेखक ने आज
की पढ़ी-लिखी तेज़-तर्रार स्त्री को इस तरह लिखा है कि कहीं कोई कथन चुभता भी नहीं
और आँख में निगाह में चढ़े बिना बचता भी नहीं है। वस्तु की तरह प्रेम को प्राप्त
करना तो सबके लिए दुखकर है, वही कथा नायिका के साथ होता और उसकी परवाह करने में
नायक शहर दर शहर घूमता रहता है। इतना परेशान होता है कि उसका सुकून तबाह हो जाता है।
हरिदास व्यास जी
की कहानियों में एक बात और नयी लगी कि वे पाठक से कहानी की गुत्थी सुलझाने की माँग
करते हैं। यानी कई कहानियों में अंत में एक प्रश्न पाठक के हिस्से छोड़ जाते हैं।
जैसे– हो सकता है आप जानते हों कि आगे क्या हो सकता है! जैसे– आप कहें कि उससे बात
करने की मुझमें हिम्मत ही नहीं।
‘पितृ कल्प’, ‘कहानी है कि खत्म नहीं होती’, ‘बस एक बार’, ‘उस दिन से पहले’, ‘सुख’, ‘परिवर्तन’, ‘रसौली’,’सुनो केशव’, ‘अबेकस टूटता हुआ’, ‘खुशबू’, ‘कन्नी नहीं मानती’, ‘मटमैला-सा चाँद’, ‘इससे पहले की बादल बरसे’, ‘गुमशुदा’, ‘आदरजोग आदमी’।
संग्रह की सोलह कहानियाँ, जो अपने में तमाम तरह की
जद्दोजह समेटे, विमर्श और समाज का खुरदरापन लिए दिखती हैं।
प्रत्येक कहानी के बारे में यहाँ नहीं लिख रही हूँ। मैं चाहती हूँ इस संग्रह तक
पाठक स्वयं पहुँचे तो ज्यादा उसे पाठकीय संतोष मिलेगा।
अंतिम कहानी
‘आदरजोग आदमी’ कहानी नहीं एक ऐसा बयान है, जिसे लगभग लेखक
रू-ब-रू होते होंगे। इस कहानी में सैलाब भाई नामक एक लेखक है जो दफ्तर से छूटकर
पंडित के चाय के ठेला पर जाता है और साहित्यिक बातचीत करना, साहित्यिक
पत्रिकाएं पढ़ना, चर्चा करना आदि शुरू करता है और बाद में
साहित्यिक गोष्ठियों के आयोजन तक बात पहुँच जाती है।
कुलमिलाकर नवांकुर,और दूर-दराज गाँव-देहात में रहकर शान्ति से लेखन करने वाले लेखक भले सुविधा संपन्न न हों लेकिन उनकी प्रतिभा जब खुलकर सामने आती है तो अच्छे-अच्छे वरिष्ठों की कुंठा जाग्रत हो जाती है। इस कहानी में भी सैलाब भाई के प्रति उपाध्याय और अस्थाना जैसे वरिष्ठों की अपनी कुंठा मंच से ही निकलनी शुरू हो जाती है। बहरहाल इस संग्रह की लगभग कहानियां कथ्य में भाषाशैली में नयापन लिए हुए दिखती है और पाठक फ्रैंडली हैं। इसी के साथ लेखक को अनेक शुभकामनाएँ! अस्तु !
वरिष्ठ कथाकार-
चिन्तक प्रियंवद के प्रति समर्पित हरिदास व्यास जी का कथासंग्रह ‘कहानी है कि खत्म
नहीं होती’ बोधि प्रकाशन से २०२२ में प्रकाशित है। इस संग्रह में 16 कहानियाँ हैं। मूल्य 150 रुपये है।
समीक्षक - कल्पना मनोरमा
सुंदर समीक्षा
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