उजाले मिटाने लगे...



उजाले मिटाने लगे

मुसलसल नाम-ओ-निशां

अँधेरे का जब से

मलमल-सी हरी चादर में

सुराख होना जारी है।

कल्पना मनोरमा 




 

Comments

Popular posts from this blog

बहस के बीच बहस

कितनी कैदें

कवि-कथानटी सुमन केशरी से कल्पना मनोरमा की बातचीत