तू भी एक सितारा है


रात के ग्यारह बज रहे थे। बेटे को जल्दी सुलाने की खातिर माँ परेशान थी लेकिन बेटा खिड़की से झाँकते चाँद पर फ़िदा था। लाख जतन करने के बाद भी जब निक्कू नहीं सोया तो गुस्सा होकर माँ ने उसकी तरफ से करवट बदल ली।

मम्मा, चाँद से मैंने सिर्फ एक तारा माँगा था फिर भी वह बादल ओढ़कर छिप गया।निक्कू ने माँ को अपनी ओर खींचते हुए कहा। 

चाँद बहुत दूर से अभी-अभी आसमान पर आया है, थका होगा। वैसे भी पहले वह अपने सितारों से बात करेगा क्या तुझसे? अच्छा! चलो अभी सो जाओ, कल ग्रेट मिल्टन एकेडमी में इंटरव्यू है तेरा। तुझे स्कूल जाना है। गिनतीअंग्रेजी के अल्फावेट, ओलम, तुझे जो याद करवाया गया है, सब कुछ याद है न?” माँ ने पूछा।

हाँ मम्मा, लेकिन मुझे अभी तारा चाहिए, हूँ हूँ हूँबेटे ने जिद करते हुए कहा।

निक्कूआज सो जाओ, कल हम चाँद से तारा ज़रूर माँगेंगे, तेरे लिए।बेटे के अनोखे खेल पर माँ प्यार भरीं थपकियाँ देकर उसे सुलाने लगी।

क्या चाँद बच्चों की नहीं, सिर्फ बड़ों की बात सुनता है?” जिज्ञासा लिए वह बोला।

निक्कू! सच कहूँ? क्योंकि झूठमूठ का बहलाना मुझे अच्छा नहीं लगता।

हाँ, बताओ न मम्मा प्लीज!

 “चाँद, सितारों को किसी को नहीं देता है। तुझे भी नहीं देगा।

क्यों ?”

क्योंकि चाँद को अपने तारे बहुत ज्यादा प्यारे हैं, जैसे तू मुझे।

मैं क्या तारा हूँ!” 

हाँ, तू मेरा चमकीला सितारा है।तारीफ़ के बोल सुनकर नुक्कू माँ की गुनगुनी छाती से चिपक कर मुस्कुराने लगा और चाँद-सितारे के सपने देखता हुआ जब सो गया

बेटे की बुद्धिमत्तापूर्ण सोच और बातों पर माँ का मन महक उठा। उसने अपने हाथ जोड़कर किसी अज्ञात का धन्यवाद अदा कर वह भी सो गयी। सुबह के धुंधलके में माँ को कुछ आहट महसूस हुई।उसने कान लगाकर सुना तो स्टडी रूम से आव़ाज आ रही थी और निक्कू उसकी बगल से गायब था।वह समझ गयी कि उसका बेटा स्कूल जाने के लिए उठकर अपने जूते-मोज़े खोज रहा है। 

निक्कू, अभी रात बाकी है। सो जाओ!” माँ ने लेटे हुए आव़ाज लगाई

नहीं मम्मा, सुबह हो गयी, मुझे स्कूल जाना है।

"मेरी नन्हीं किलकारी पहली बार घर से, मेरी गोद से निकल स्कूल की ओर बढ़ रही है, ऐ दुनिया! इस नन्हें से फ़रिश्ते के प्रति दयालु बनी रहना।

माँ ने बुदबुदाया और अंगड़ाई लेकर उठकर बेटे को सजाने-धजाने मैं उसकी मदद करने लगी। माँ ने जब विद्यार्थी निखिल को देखा तो उसका मन उमग आया। आँखों की कोरों से ख़ुशी के आँसू लटक आये जिसे आँचल में सहेजते हुए आगे बढ़कर उसने अपनी आँख से काजल लेकर निक्कू के कान के पीछे लगा दिया। घर में चारों ओर उमंग ही उमंग के स्फुलिंग उड़ते देख माता-पिता को अनकहा संतोष हुआ लेकिन एक डर भी माँ को सताने लगा। 

"स्कूल जाते वक्त निक्कू रोने लगा तो?" 

“कृष्णा चिंता न करो! उसके लिए टॉफी चॉकलेट और नई कार का इंतज़ाम मैंने पहले से ही कर लिया थापिता ने कहा। पर माँ-पिता दोनों की ऊहापोह को झुठलाते हुए निक्कू अपनी पसंद की आसमानी जैकिट, काले बूट और स्कूल बैग कन्धों पर लादकर पिता के साथ हँसते हुए स्कूल चला गया। 

बहुत देर मां चौखट पर खड़ी हाथ हिलाती रही जब निक्कू उसकी आँखों से ओझल हो गया तो घर लौटकर खुशी खुशी अपने काम समेटने लगी।

निक्कू कहीं किसी प्रश्न पर अटक न जाए? कहीं टीचर ने कठिन प्रश्न पूछ लिया तो? निक्कू जवाब देने में हड़बड़ा गया तोमाँ घर के कार्यों को समेटते हुए अपने बेटे के बारे में सोचते हुए उसके लौटने की प्रतीक्षा में व्याकुल होने लगी थी। 

बधाई हो कृष्णा! तुम्हारे बेटे को यू.के.जी में एडमिशन मिल गया।पिता ने सगर्व कहा।

माने ?” सुखद आश्चर्य से माँ ने पूछा।

माने, एक कक्षा को जम्प कराकर प्रिंसिपल महोदय ने इसे आगे की कक्षा में ये कहते हुए एडमिट कर लिया कि, बच्चा बुद्धिमान है।जो माँ अभी तक मन में ये जान रही थी कि उसका बेटा होशियार है, सुनकर उसका विश्वास और पक्का हो गया कि उसका बेटा सच में अद्भुत प्रतिभा का धनी है।

धीरे-धीरे निक्कू बड़ा हो रहा था और अपने कामों को स्वयं करने की लालसा उसमें बढ़ती जा रही थी। कुछ ही दिनों में वह स्कूल से मिलने वाला गृहकार्य भी खुद समय से खत्म करने लगा। माँ का आत्म गौरव बढ़ता जा रहा था। समय से खेलना, खाना और सोना सिखाने के बीच एक बात को लेकर वह चिंतित थी, निक्कू ने अभी तक बोतल से दूध पीना नहीं छोड़ा था। 

 

मेरा प्यारा निक्कू अब बड़ा हो गया है इसलिए पहले वह दाल-चावल खाएगा उसके बाद  गिलास से दूद्दू पिएगा।एक दिन स्कूल से निक्कू जब घर लौटा तो माँ ने उसे गोद उठाते हुए कहा। इतना सुनकर निक्कू ने अपना मुँह फुला लिया और गोद से उतरकर खुद ही रसोई की ओर बढ़ गया। देखकर माँ को हँसी आ गयी और उसे निक्कू को मिल्क-फीडर देना ही पड़ा। इस तरह निखिल का स्कूल से लौटकर बोतल से दूध पीने का क्रम कक्षा तीसरी तक लगातार चलता रहा और समय अपनी धुन में पंख लगा कर उड़ता रहा।

 

निक्कू अब कक्षा पाँचवीं में किसी दूसरे स्कूल में पढ़ने जा रहा था। माँ स्कूल के नए माहौल को लेकर जितनी परेशान थी, उतना ही उत्साहित भी थी। निक्कू का हौसला दिन-दूना रात-चौगुना बढ़ते देख उसे भी जल्दी तसल्ली हो गयी कि उसका बेटा अच्छे स्कूल में पढ़ने गया है। स्कूल की गतिविधियाँ हों या टेस्ट सभी जगह निक्कू का स्थानप्रथमसुनिश्चित होता जा रहा था।

 

एक बार शिक्षकों का चहेता निक्कू शिमला के टूर से लौट रहा है। माँ उसे स्कूल से लेने गईं। जो टीचर अभिभावकों के साथ बच्चों को सी-ऑफ़ कर रही थी,उसने निक्कू को माँ के साथ देखा तो बहुत खुश हुई और आगे बढ़कर पूछा ।

 “निखिल आपका बेटा है?”

जी मैडम! क्या हुआ ?” माँ ने डरते हुए कहा। 

नहीं नहीं… निखिल बहुत होनहार बच्चा है, गॉड ब्लेस यू बोथ! आपको जानकार हैरानी होगी इसने अपने मित्रों और मेरी कितनी मदद की है। कमाल के संस्कार दिए हैं आपने।” 

 

जी, धन्यवाद मैडम!


 

निक्कू की माँ का मन गिला हो गया। अध्यापिका को उसने धन्यवाद दिया और रास्ते में बेटे को समझाने लगी,”बड़ों से तारीफ़ पाने के लिए बहुत मेहनत करनी पड़ती है। विनम्र रहना पड़ता है। क्या तुम इस बात को जानते हो? तुम सदा ऐसे ही बने रहना मेरे लाल!”  निक्कू ने माँ आद्र भाव से बेटे से बातें करती जा रही थी जिसे बीच में रोकते हुए निक्कू ने पूछा,”मम्मा आपको आज अच्छा लगा न!

हाँ,आज तो मुझे तुम्हारी वजह से बहुत अच्छा लगा, थैंक्यू सो मच।

 

निक्कू खिलखिलाकर हँस पड़ा और कुछ सोचने लगा। माँ ने पूछा तो बता नहीं पाया। इसी प्रकार निक्कू ने बचपन से बड़े-बड़े सपने देखना और उन्हें पूरा करने के लिए कड़ी मेहनत करना सीख लिया था। एक रविवार निक्कू ने स्वयं से स्नान करने की जिद लगा रखी थी किन्तु माँ उसे अपने हाथों से नहलाना चाहती थी। 

कृष्णा, कभी-कभी बच्चों की जिद मान भी लेनी चाहिए।पिता ने अखबार पढ़ते हुए निक्कू की तरफ़दारी करते हुए जब उसकी माँ को टोका तो उसने हाँ में सिर हिला दिया और खुद रसोई में छोले-कुल्चे बनाने लगी। अभी थोड़ा ही वक्त बीता था कि गुसलखाने की ओर से आवाज़ें आने लगीं।

 

मम्मा, जल्दी आओ, जल्दी देखो न! मैं तो फेमस हो गया!

 

अरे बाबा! क्या हो गया? आज ही तू अकेले अकेले नहाने गया और फ़ेमस भी हो गया।माँ चुहल करते हुए जब हमाम में पहुँची तो देखा निक्कू उस टब के ऊपर झुका मुस्कुरा रहा था जिसमें वह कपड़े धोती थी। टब में थोड़ा-सा सर्फ का अंश बचा रहने के कारण उसमें भरे पानी में छोटे-बड़े अनेक-अनेक बुलबुले तैर रहे थे और सभी चमकीले बुलबुलों पर गोलमटोल निक्कू की परछाईं दिख रही थी।

क्या कह रहे हो बाबू ?” माँ ने कहा।

देखो न मम्मा! टब में कितने सारे कैमरे मेरी तस्वीर खींच रहे हैं।

बेटे की चाहत में मिली अपनी आशाओं पर माँ खिलखिला कर हँस पड़ीं। "आशा के खंभों पर टिका मुरादों का आसमान!" माँ को हँसता देख निक्कू टब में कूदकर छपाछप करते हुए हा हा हा हंस पड़ा। पिता भी मुस्कुराते हुए आनन्द लेने हमाम में जा पहुँचे।

"कैसा तो दिन खिल उठा था वह।" महात्वाकांक्षी उस घटना की हँसी-ठिठोली को निक्कू की मां अक्सर बातों में ले आती। उसी बीच एक दिन निक्कू ने बताया कि उसके यूनिट टेस्ट आने वाले हैं। माँ ने पूछा,” इस बार टेस्ट कितने अंक के होने वाले हैं?”

फिफ्टी मार्क्स।” निक्कू ने कहा।

पाचास अंक ? ओके,तू कितने लाएगा ?” 

उसमें पूछना क्या! फिफ्टी आउट ऑफ़ फिफ्टी।

ओह वाह! फोट्टी नाइन एंड हाफ़भी अगर आते हैं तो भी चलेगा।माँ ने नाज़ से ये सोचते हुए कहा कि उसका बेटा तो टॉपर रहेगा ही।

उससे कम…?” निक्कू ने रेखांकित करते हुए पूछा।

नो नो नो बिल्कुल नहीं चलेगा।माँ ने गुर्राते हुए कहा और मुस्कुराते हुए बेटे को गोद में बिठा लिया। निक्कू फिर शून्य में खो गया।

 

परीक्षाएँ खत्म हो चुकी थीं। अब अंक जानने की बारी थी जो हर दिन निक्कू लेकर घर आने लगा था। पहले दो दिन माँ के बिना पूछे ही उसने अंग्रेजी और गणित में अपने फिफ्टी अंक आये हैं, बताये और परिवार की तारीफ़ हासिल की। उसके बाद बचे विषयों में माँ के पूछने पर अपनी झेंप छिपाते हुएफोट्टी नाइन एंड हाफ़अंक बताये। माँ ने नकली गुस्सा दिखाते हुए कहा,”ये आधा अंक कहाँ खो देता है रे?” सुनकर निक्कू को धक्का-सा लगा। उसके चेहरे की गिरती रंगत देखकर माँ ने उसे सांत्वना दी और आगामी परीक्षाओं में अच्छा परफॉरमेंस करने का वादा लेते हुए,उससे पूछा।

निक्कू,तेरे अंक भले कई विषयों में फोट्टी नाइन एंड हाफ़ आये हैं लेकिन क्लास में पोजीशन तो तेरी ही  ‘प्रथमहोगी न ?” महत्वाकांक्षी माँ ने बेटे से पूछा।

नहीं पता, पी.टी.एम. में खुद ही देख लेना।

अगले दिन निक्कू माता-पिता के साथ विद्यालय पहुँचा। कक्षा अध्यापिका रिपोर्ट कार्ड के साथ क्लास में अभिभावकों से घिरी बैठी थीं। निक्कू को देखकर मुस्कुरायीं।

आप लोग थोड़ा प्रतीक्षा कीजिए,अभी बुलाती हूँ।अध्यापिका बोलकर दूसरे अभिभावक के साथ व्यस्त हो गयी। माँ अपने बेटे की पोजिशन के बारे में निश्चिन्त तो थी ही लेकिन उसे टीचर की नीरसता पर खीझ आने लगी। क्योंकि वह शिक्षक से अपना टॉपर विद्यार्थी की माँ वाला वेलकम चाहती थी जो उसे मिला नहीं। जब शिक्षिका कुछ नहीं बोली तो निक्कू की माँ ने आगे बढ़कर ख़ुद ही पूछ लिया।

मैडम क्लास में निखिल की रैंक क्या है?”

आइये बैठिये प्लीज! आपको ही बुलाने वाली थी। इसकी रैंक फिफ्त मतलब पाँचवी आई है, लेकिन निखिल होशियार बच्चा है। थोड़ी-सी मेहनत और कर लेता तो क्लास में प्रथम यही रहता। आप परेशान मत होइए शायद स्थान परिवर्तन के कारण हुआ है। बच्चों को स्कूल की इमारत से भी भावनात्मक जुड़ाव हो जाता है। फिर यहाँ तो इसके अध्यापक भी नए थे। फाइनल एग्जाम में कवर कर लेगा।” 

 

उसकी माँ को शिक्षिका की कही कोई भी बात सुनाई नहीं पड़ रही थी। उसके कानों में तोफोट्टी नाइन एंड हाफ़अंक बज रहे थे। माता-पिता तनाव में आ चुके थे। जैसे ही बाहर निकले उसके पापा ने बिना सोचे-समझे निक्कू के सिर पर ज़ोरदार चपत जड़ दी। माँ घबराकर आगे बढ़ गयी। गाड़ी में सब मौन थे। पिता ने  डाँटना जारी रखा। निक्कू अपने जीवन में पहली बार सहम कर भीगे पंछी जैसा हो गया था लेकिन उसकी आँखों में अभी भी आँसू नहीं थे। घर आकर पिता नेतूने झूठ बोलना कहाँ से सीखा, मुझे इस बात की बहुत गुस्सा हैकहते हुए दो थप्पड़ और रसीद दिए। माँ ने फिर भी निक्कू से कुछ नहीं कहा क्योंकि माँ को इस पूरी घटना में अपनी गलती ज्यादा निक्कू की कम लग रही थी। माँ ने निक्कू को खाना खिलाया चाहा जिसे उसने खाने से इनकार कर दिया और सोने चला गया।

 

निखिल, सोकर जल्दी उठना। शाम को हम गांधी पार्क चलेंगे।माँ को सुनता हुआ निक्कू अपने कमरे में चला गया। घड़ी की टिक टिक सुनते हुए कब उसकी आँख लग गयी पता नहीं चला। उसके घर में अलग प्रकार की उदासी छा गई थी। उस दिन निक्कू के घर अफ़सोस के साथ शाम चुपके से उतर आई थी। माँ ने पिता को चाय बनाकर दी और पार्क चलने के लिए पूछा। निक्कू के पिता ने मना कर दिया। वे निक्कू को अपना पूरा गुस्सा दिखाना चाहते थे। माँ ने निक्कू के कमरे में झाँक कर देखा तो वह उदास सोया था। उसे देखकर माँ का कलेजा मुंह को आने को हुआ। 

"उठो बेटा! हम लोग पार्क चलेंगे।"

मां ने जल्दी से बेटे को उठाकर उसे तैयार किया और एक्टीवा से पार्क चली आई। रास्ते भर दोनों चुप बने रहे थे। पीछे से निक्कू ने मां का पेट भी नहीं पकड़ा। उसकी पीठ पर अपना सिर भी नहीं टिकाया। मां उसके मन के दर्द को समझ रही थी।

पार्क हँसते-खेलते बच्चों से भरा था। बस उसका बेटा रोनी सूरत के साथ इधर-उधर देख रहा था। जो माँ के लिए असहनीय पीड़ा का सबब बनता जा रहा था। उसने खचाखच भरे पार्क में चारों ओर सिर घुमाकर देखा। दूर एक कोने में एक सीमेंट की सीट उसे खाली दिखी। 

निक्कू, उस कोने में जहाँ मालती की झाड़ है वहाँ देखो एक सीट खाली है।

हाँ, है तो ।

तो क्या हम वहाँ चलकर बैठें या तुम झूला झुलोगे?”

“........”

निक्कू नहीं बोला तो माँ ने कहा, “अच्छा चलो! हम वहाँ चलकर बैठते हैं।जब पास जाकर देखा तो सीट के पीछे के तरफ 'अहिंसा परमो धर्मः' खुदा था। जिसे पढ़कर माँ के मन में सनाका सा हुआ। वह ठिठक कर सोचने लगी। निक्कू चुपचाप आलथी पालथी लगा कर बैठ गया।

”मैंने अपने बच्चे पर अत्यधिक महत्वाकांक्षी बनकर हिंसा तो नहीं की? क्या इतनी छोटी सी उम्र में अपने बच्चे को असहजता की और धकेल दिया है? हाय ये मैंने क्या किया?" उसके भीतर अजीब तरह की विचलन के साथ हूक सी उठने लगी। उसने बेटे का हाथ पकड़कर अपने सामने घुमा लिया।

निक्कू मैं एक बात पूछना चाहती हूँ?” माँ ने अपना छटपटाया हुआ मौन तोड़ा।

“........”

अच्छा और कुछ मत बोलो लेकिन ये तो बताओ कि तुमने झूठ क्यों बोला? क्या जरूरत थी गलत नंबर बताने की?”

“..........” 

पहले तो निक्कू को लगा उसके शब्द चुक गए है और जब बोलना चाहा तो उसका गला रुँधने लगा, उसकी आँखों में पहली बार पानी छलछला पड़ा था।

निक्कू बेटा, ऐसे काम तो नहीं ही चलेगा, तुझे बताना तो पड़ेगा। आख़र ये कदम तुमने क्यों उठाया?" 

हाँ, बताता हूं।

तो फिर बताओ न झूठ क्यों बोला?” कहते हुए माँ ने अपनी भरी-भरी भभराई आँखें उसके चेहरे पर टिका दीं।

आप पिटाई करोगी।

सच बताने पर कभी नहीं.., प्रोमिस! सच्ची में।

मम्मा, मुझे लगा कि जब मेरे कम मार्क्स आये हुए आप सुनोगी तो आपको बहुत बुरा लगेगा। इस लिए मैंने…।” 

ओहो!निक्कू की मासूमियत पर माँ की आँखें छलक को हो आयीं लेकिन उसने रोक लिया।

मम्मा, याद करो आपने कहा था कि कम नम्बर यदि आए तोफोट्टी नाइन एंड ए हाफ़ला सकता हूँ,उससे कम बिल्कुल नहीं।निक्कू की बात सुनकर उसके पास प्रतिउत्तर के लिए शब्द नहीं बचे थे।

मम्मा आप ने कहा था न कि आप गुस्सा नहीं होओगी?”

हाँ, तो मैं गुस्सा नहीं हूँ? मैं तो कुछ सोच रही हूँ।” 

क्या सोच रही हो?”

 “तू नहीं समझेगा अभी बेटा।



मैं सब समझ सकता हूँ। आप मुझे बताओ अभी। मैं कभी झूठ नहीं बोलूँगा। खूब पढूँगा और कक्षा में प्रथम ही आऊँगा।” सुनते ही निक्कू ने उसका हाथ पकड़ लिया। 

मैंने ये क्या किया? मेरे रब!” माँ का मन ग्लानि से भर गया। उसने निक्कू को लरज कर अपनी ओर खींच लिया।

कक्षा में पोजिशन प्रथम हासिल भले न कर पाओ लेकिन झूठ कभी मत बोलना मेरे बच्चे। अब से वादा करती हूँ कि मैं कम अंक आने पर भी कभी गुस्सा नहीं करुँगी।” 

सच्ची मम्मा!

सच्ची, अच्छा बताओ, बहुत दिनों से हम आउटिंग के लिए बहार नहीं गए हैं?”

हाँ, मेरे एग्जाम थे न!

ओ यस! तो फिर तैयार रहना, कल हम तेरा सच बोलना सेलिब्रेट करने तेरी पसंद वाले रेस्टोरेंट चलेगें!

सच्ची माँ!निक्कू के चेहरे पर पतली सी ख़ुशी पसरने लगी थी।

मैं वादा करती हूँ, तेरी सक्सेस और फेलियर दोनों को सेलिब्रेट करूँगी! तू भी एक सितारा है! मैं तूझे बहुत प्यार करती हूं।” 

"मैं भी! अब कभी भी झूठ नहीं बोलूँगा मम्मा!" माँ को भावुक देखकर निक्कू उसके गले से लग गया। 

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2023 के अप्रैल अंक में प्रकाशित 
चित्र : गूगल से साभार 


 





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